महाकुंभ मेला क्या है और क्यों आयोजित किया जाता है। | Mahakumbh Mela, Reason and Importance

महाकुंभ मेला क्या है और क्यों आयोजित किया जाता है। | Mahakumbh Mela, Reason and Importance

 महाकुंभ मेला क्या है। what is Mahakumbh 

Mahakumbh Mela 2025: कुंभ या महाकुंभ मेले का आयोजन भारत के सनातन धर्म और आस्था से जुड़ी एक प्राचीन परंपरा है जिसमें लोग चार प्रमुख तीर्थ स्थान हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक पर जाकर पवित्र स्नान करते हैं। महाकुंभ मेले में स्नान करने को बहुत ही अधिक पवित्र माना जाता है जिसका अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। सनातन कथाओं के अनुसार यह इतिहास बताया जाता है कि महाकुंभ मेले का आयोजन का इतिहास समुद्र मंथन के समय से शुरू हुआ था। महाकुंभ मेला 2025 में 13 जनवरी से लेकर 26 जनवरी तक आयोजित किया जाएगा । 

Mahakumbh Mela 2025
महाकुम्भ मेला

महाकुम्भ आयोजन की शुरुआत कैसे हुई ?

जब पूरा संसार श्रीहीन हो गया था तब देवताओं तथा असुरों द्वारा सागर मंथन किया गया था जिसमें से एक-एक करके 14 रत्न निकले थे। सागर मंथन में सबसे आखिर में जाकर अमृत निकलता है जिसको स्वयं भगवान धन्वंतरि लेकर उपस्थित होते हैं । अमृत को देखकर असुरों और देवताओं में पहले अमृत पीने के होड़ लग जाती है। उस समय असुरों के राजा बलि थे जिनकी सेना में एक स्वरभानु नाम का सेनापति था जो कि आकाश, भूमि तथा जल तीनों क्षेत्रों में बहुत तेज गति थे दौड़ सकता था। उस असुर ने भगवान धन्वंतरि के हाथ से अमृत कलश छीन लिया और उसे लेकर वह वहां से भाग गया । सभी देवता सूर्य, चंद्रमा तथा देवगुरु बृहस्पति भी उनके के पीछे लग जाते हैं ।

अमृत को लेकर स्वरभानु असुर अंतरिक्ष में दौड़ रहा था उसी समय देवता उससे अमृत कलश छीनने की कोशिश कर रहे थे। आपसी लड़ाई में अमृत कलश से कुछ अमृत की बूंदे भूमि के चार अलग-अलग स्थान पर गिरती है पहली बूंद हरिद्वार में गिरती है,  अमृत कलश में से दूसरी बार जब अमृत छलकता है तो वह गंगा जमुना सरस्वती के संगम स्थान प्रयागराज में गिरता है। अमृत कलश से तीसरी बार अमृत छलक कर उज्जैन में शिप्रा नदी में गिरता है, तथा अंत में चौथी बार अमृत कलश से अमृत छलक कर महाराष्ट्र में गोदावरी नदी नासिक में गिरता है।

इन स्थानों पर गिरा था अमृत

 महाकुंभ का आयोजन हरिद्वार में गंगा नदी, प्रयागराज में नदियों का संगम,  उज्जैन में शिप्रा नदी तथा महाराष्ट्र में गोदावरी नदी नासिक में जहां-जहां भी अमृत की बूंदे गिरी थी उसे स्थान के जल को अमृत के समान पवित्र माना जाता है इसलिए हर 12 साल में महाकुंभ मेले का आयोजन इन्हीं चार स्थानों पर किया जाता है । इन चार स्थान के जल को अमृत समझ कर इसमें स्नान किया जाता है तथा अपने पुण्य को बढ़ाया जाता है। वैसे तो कुंभ मेले का आयोजन 12 वर्ष में एक बार किया जाता है लेकिन हरिद्वार तथा प्रयागराज में 6- 6 वर्षों के अंतराल में कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है ।

महाकुंभ का आयोजन स्थान कैसे निर्धारित किया जाता है ?

कुंभ मेला आयोजन कब होगा इसका निश्चय सनातन धर्म के ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति के आधार पर किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में तथा बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं, उस मुहूर्त में महाकुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में सुनिश्चित किया जाता है। यदि सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं तो महाकुंभ में लेकर आयोजन हरिद्वार में किया जाना सुनिश्चित किया जाता है। तीसरा जब सूर्य और बृहस्पति दोनों ही सिंह राशि में होते हैं तो महाकुंभ मेला उज्जैन की शिप्रा नदी में आयोजित होता है। यदि सूर्य देव के सिंह राशि में रहते हुए बृहस्पति कर्क या सिंह राशि में ही रहते हैं तो महाकुंभ में मेले का आयोजन नासिक में गोदावरी नदी के किनारे किया जाता है। 

महाकुंभ मेला 12 वर्षों बाद ही क्यों आता है ?

महाकुंभ मेले के आयोजन के पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि बृहस्पति ग्रह को सूर्य का एक चक्कर लगाने में लगभग 12 वर्षों का समय लगता है, और यही 12 वर्षों के अंतराल में महाकुंभ में लेकर आयोजन किया जाता है। सनातन शास्त्रों में यह भी मान्यता है कि 12 वर्षों में एक बार सभी नदियां अपना कायाकल्प करती है । जिससे उनका जल पवित्र और अमृत के समान हो जाता है । उस जल में स्नान करने से मनुष्य बहुत पुन्य प्राप्त करते हैं । यह भी महाकुंभ में लेकर आयोजन का एक मुख्य कारण माना गया है।

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