एक बार जब ऋषि दुर्वासा को भगवन शिव ने एक पुष्प माला भेंट की थी , तब देवराज इन्दर से ऋषि दुर्वासा की भेंट हुई तब ऋषि दुर्वासा ने महादेव से प्राप्त वह माला देवराज इंद्र को देते है, लेकिन इंद्र उस माला को अपने वहां हैरावत हाथी के सिर पर रख देते है, तब हैरावत इस माला को अपने मस्तक से निचे गिरा देता है। भगवान शिव द्वारा प्रदान की गई पुष्प माला का ऐसा अपमान देखकर ऋषि दुर्वासा को अत्यंत क्रोध आ जाता है और वह क्रोध के वश में समस्त सृष्टि को श्रीहीन होने का श्राप दे देते है। समुद्र मंथन
संसार में पुनः श्री सम्पूर्ण करने के लिए समुद्र मंथन करने का निश्चय किया जाता है। समुद्र मंथन करने के लिए देवता तथा असुर एकत्रित होकर समुद्र मंथन करते है। समुद्र मंथन करने से समुद्र से एक एक करके कुल चौदह रत्न निकलते है।
लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुराधन्वन्तरिश्चन्द्रमाः।
गावः कामदुहा सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवांगनाः।
अश्वः सप्तमुखो विषं हरिधनुः शंखोमृतं चाम्बुधेः।
रत्नानीह चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्यात्सदा मंगलम्।
इस श्लोक के अनुसार कुल चौदह रत्न समुद्र मंथन में निकले थे :
1. समुद्र मंथन से सर्वप्रथम हलाहल विष निकलता है। जिसे देवो के देव महादेव ग्रहण करते है। हलाहल विष पिने के कारण भगवन शिव का कंठ (गला ) नीला पड़ जाता है जिस कारण से उनको नीलकंठ भी कहा जाता है।
2. समुद्र मंथन से दूसरे स्थान पर कामधेनु गाय प्रकट होती है। कामधेनु एक इच्छा पूर्ति करने वाली दिव्य गाय थी जिसको देवताओं के साथ स्वर्ग में रखा जाता है।
3. समुद्र मंथन से तीसरे स्थान पर उच्चैश्रवा घोड़ा प्रकट होता है जिसे अश्वों का राजा भी कहा जाता है। इस अश्व को असुरो द्वारा ग्रहण किया गया था।
4. समुद्र मंथन से चौथे स्थान पर सात मुख वाला स्वेत रंग ऐरावत हाथी प्रकट होता है। ऐरावत देवराज इंद्र का वाहन भी है इसलिए उसे पुनः इंद्र को दे दिया गया था।
5. समुद्र मंथन से पाँचवे अमूल्य कौस्तुभ नामक मणि निकलती है जिसको भगवान विष्णु द्वारा अपने वक्षस्थल पर धारण किया गया था।
6. समुद्र मंथन से छठे स्थान पर कल्पद्रुम नाम का एक धार्मिक ग्रन्थ प्रकट होता है।
7. समुद्र मंथन से सातवें स्थान पर स्वर्ग की अप्सरा रंभा प्रकट होती है। इसे पहले की ही तरह स्वर्ग की नृत्का के रूप में रखा जाता है।
8. समुद्र मंथन से आठवें स्थान पर देवी लक्ष्मी जी तथा उनकी बहन दरिद्रा भी प्रकट होती है। देवी लक्ष्मी का विवाह पुनः भगवान विष्णु के साथ हो जाता है।
9. नौवें स्थान पर समुद्र मंथन से वारुणी नाम की मदिरा उत्पन्न होती है जिसे असुरों को दे दिया गया था।
10. दसवें स्थान पर सोमरस प्रकट होता है जिसे भी भगवान शिव द्वारा ही ग्रहण किया जाता है।
11. ग्यारहवें स्थान पर एक वृक्ष प्रकट होता है जिसका नाम परिजात था। इसे देवताओ ने नंदनवन में स्थापित किया था।
12. बारहवें स्थान पर पांचजन्य शंख उत्पन्न होता है। महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने भी पांचजन्य शंख से ही शुरआत की थी।
13. तेरहवें स्थान पर समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि जी प्रकट होते है जिनके हाथों में औषधियों से भरा एक कलश रहता है।
14. समुद्र मंथन से सबसे अंत में अमृत निकलता है। जिसमे से एक असुर राहु ने छल से पि लिया था, उसके पश्चात यह अमृत कलश देवताओ को सौंप दिया गया था।
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