कौन है वाराही देवी ?
Varahi Devi: मां वाराही देवी का स्वरूप दिखने में बिलकुल भगवान विष्णु के वराह अवतार जैसा लगता है । मां वाराही देवी को महादेव की सबसे प्रिय नगरी काशी की क्षेत्र पालिका (नगर रक्षक) भी कहा जाता है। क्योंकि जिस तरह कालभैरव दिन के समय काशी की रक्षा करते है उसी तरह मां वाराही रात के समय काशी की रक्षा करती है। इसलिए इन्हे गुप्त वराही भी कहा जाता है। मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक होने के कारण इन्हें बहुत पवित्र और निर्मल माना जाता है। यदि कोई भी इंसान सच्चे मन से कोई मन्नत मांगता है तो मां वाराही उनकी इच्छा अवश्य पूरी करती है।
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मां दुर्गा की सेनापति तथा वराह अवतार की शतिरूपा।
Varahi ammavaru: माता वाराही मां दुर्गा की सेनापति भी मानी जाती है । कहा जाता है की असुरो से युद्ध के समय मां वाराही माता दुर्गा की सेनापति बनी थी। इसके साथ ही चौसठ योगिनी शक्तियों में इनका 28 वा स्थान माना जाता है। जोकि भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्तिरूपा भी है इसी कारण से मां वराही अत्यधिक शक्तिशाली मानी जाती है।मान्यता है की जब मां दुर्गा का शुभ और निशुंभ के साथ युद्ध हुआ था तब सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को मां दुर्गा के साथ भेजा था । और उसी समय भगवान विष्णु ने अपने वराह अवतार की शक्ति मां वाराही को उनकी सहायता के लिए भेजा था जो मां दुर्गा की सेनापति बनी थी।
वाराही माता का मंदिर (Varahi Devi temple)
Varahi Ammavaru Temple: मां वाराही देवी का मंदिर वाराणसी के दशाश्वमेध स्थान के मानमंदिर घाट के पास ही गलियों के बीच में स्थित है। वही गलियों के बीच में ही मां वराही की मूर्ति भी स्थापित की गई है। इस मंदिर की कुछ विशेषताएं तथा मान्यताएं है। यह मंदिर सुबह 5 बजे से लेकर रात के 8 बजे तक खुलता है। जिसमे वाराही माता की मूर्ति जमीन से एक मंजिल नीचे स्थित है। किसी भी भक्त को मां वाराही के गर्भ गृह में जाने की अनुमति नहीं है। देवी की मूर्ति के ठीक ऊपर की छत एक झरोखा बनाया गया है उसी झरोखे से मां वराही के दर्शन संभव होते है। माना जाता है की माता रात होते ही काशी की कोतवाली के लिए चल पड़ती है और सुबह 4 बजते ही वापस अपने मंदिर में चली आती है।
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