कौन है ? सप्त चिरंजीवी जिन्हे कोई मार नहीं सकता |
7 Immortals in hindu mythology | Who is 7 Immortal People in Sanatan
सनातन धर्म के इतिहास में सप्त चिरंजीवियों का उल्लेख किया गया है , पुराणों के अनुसार कुल 7 ऐसे व्यक्ति है जो की अमर है, इनको 7 चिरंजीवी भी कहा जाता है, ये सात चिरंजीवी किसी न किसी वरदान या श्राप के कारण अमर हो गए है जोकि पृथ्वी के अंत तक जीवित रहेंगे ,अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः ।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः ॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम् ।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित ॥
इस चौपाई के अनुसार :-
अश्वत्थामा, राजा बलि, महृषि व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य तथा परशुराम ये सात चिरंजीवी है, यदि इन सात चिरंजीवियों और आठवे ऋषि मार्कण्डेय का प्रतिदिन स्मरण किया जाए तो शरीर के सारे रोग समाप्त हो जाते है और दीर्घ आयु प्राप्त होती है।
सात चिरंजीवी |
सात चिरंजीवीयों के नाम तथा उनके बारे में कुछ जानकारी :-
1. बजरंग बलि हनुमान
2. महर्षि वेदव्यास
महर्षि वेदव्यास ऋषि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे और उन्होंने ही महाभारत महाकाव्य की रचना की थी, जब शांतनु के दोनों पुत्र विचित्रवीर्य तथा चित्रांगद संतानहीन मृत्यु को प्राप्त हो गए थे तब महर्षि वेदव्यास के कारण ही उनकी विधवा रानियों के गर्भ से पाण्डु, धृतराष्ट्र तथा दासी पुत्र विदुर की उत्पति हुई थी, महाभारत युद्ध को देखने के लिए वेदव्यास जी ने धृतराष्ट्र के सारथी संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी, महाभारत के अलावा भी वेदव्यास जी ने कई महा पुराणों की रचना की, सनातन धर्म में उन्हें भी अमर माना जाता है और वह पृथ्वी के अंत तक जीवित रहेंगे
3. भगवान परशुराम
परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं जिन्होंने एक ब्राह्मण के घर जन्म लिया था, वे ब्राह्मण कुल में जन्म होने के पश्चात भी एक क्षत्रिय थे , उन्होंने भगवान शिव से शस्त्र विद्या प्राप्त की थी, भगवान शिव ने उनकी कुशलता से प्रभावित होकर उन्हें अपना परशु भेंट किया था जिसके कारण उनका नाम परशुराम पड़ गया, परशुराम जी ने कई बार इस पृथ्वी पर से क्षत्रियों का समापन कर दिया था , उन्होंने अपने परशु से सहस्त्रबाहु का भी वध किया था, परशुराम जी को भी महापुराण में चिरंजीवी माना गया है, उनका वर्णन रामायण तथा महाभारत दोनों में मिलता है।
4. राजा बलि
राजा बलि विष्णु भक्त प्रहलाद के पौत्र थे , महान राजा होने के साथ-साथ वह दानवीर तथा ब्राह्मणों का सम्मान करने वाले वीर असुर थे , जब उन्होंने इंद्रदेव से स्वर्ग को छीन लिया तब भगवान विष्णु ने स्वर्ग को मुक्त करने तथा राजा बलि की दानवीरता की परीक्षा लेने के लिए वामन अवतार लिया था , जिसमें उन्होंने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी, पहले दो पग में पूरा सृष्टि मापने के बाद भगवान वामन ने तीसरा पग राजा बलि के सर पर रखा और वह पाताल लोक में पहुंच गए , भगवान विष्णु उनकी इस दानवीरता से प्रसन्न हुए और उन्हें हमेशा पाताल लोक का राजा बने रहने तथा अमर होने का वरदान दिया पूरी
5. विभीषण जी
विभीषण महर्षि विश्रवा के सबसे छोटे पुत्र थे, जो की लंकापति रावण के भाई थे। रामायण में तो आप लोगों ने इनके बारे में बहुत कुछ सुना ही होगा। इन्होंने प्रभु की शरण ले ली थी जब रावण अधर्म कर रहा था। इसलिए इनके धर्मनिष्ठ गुण से प्रसन्न हो कर प्रभु ने इन्हें दीर्घायु का वरदान दिया हैं। हालांकि ध्यान देने वाली बात ये हैं की, मौलिक तौर पर विभीषण चिरंजीवी तो नहीं हैं परंतु इन्हें लंबे समय तक जीवित रहने का वरदान मिला हैं, पुराणों के अनुसार विभीषण महा युग के अंत तक जीवित रहेंगे।
6. कृपाचार्य
एक बार राजा शांतनु को वन में दो शिशु दिखाई दिए जिन्हे वह राजमहल में ले आए , उनमे से एक शिशु कृपाचार्य थे तथा एक उनकी बहन कृपी थी , गुरु कृपाचार्य कौरव तथा पांडव दोनों वंश के कुलगुरु थे , उनकी बहन कृपी का गुरु द्रोण के साथ विवाह हुआ था इसलिए वो अश्वत्थामा के मामा भी थे। उन्होंने दोनों ही कुरु तथा पांडु वंश के राजकुमारों को शिक्षा प्रदान किया था। कहा जाता हैं की वो एक बहुत ही असाधारण गुरु थे। उनके सामने सब एक समान थे। उन्होंने दोनों ही वंश के राजकुमारों को कई विद्या का ज्ञान भी दिया था। हालांकि कुछ परिस्थितियों के चलते उन्हें कौरवों की और से शस्त्र उठाना पड़ा।
7. अश्वत्थामा
महाभारत युग में आप लोगों ने अवश्य ही अश्वत्थामा के बारे में सुना होगा। वो गुरु द्रोण के पुत्र तथा एक महान योद्धा थे। अश्वत्थामा को गुरु द्रोण ने कड़ी तपस्या के बाद महादेव से पाया था। इसलिए अश्वत्थामा को महादेव से काफी शक्ति भी प्राप्त थी। अश्वत्थामा 11 रुद्र अवतार में से एक थे। माना जाता हैं की कृपाचार्य और अश्वत्थामा ही दो ऐसे योद्धा थे जो की कुरु वंश के तरफ से महाभारत के अंत होने तक जीवित थे। हालांकि! अश्वत्थामा अमर हैं परंतु प्रभु कृष्ण के श्राप के चलते वो न ही किसी के संपर्क आ सकते हैं और न की उनको कोई देख सकता हैं। इसके अलावा उनके बदन के ऊपर ऐसे घाव भी हैं जो की अनंत काल तक ठीक नहीं होंगे।
ऐसा माना जाता है की ये सभी सात चिरंजीवी कलयुग में भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के साथ मिलकर कलियुग के राक्षस को पराजित करने में उनकी सहायता करेंगे।
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