गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?। Why Guru Purnima Celebrate in Hindu
गुरु पूर्णिमा की शुरुआत कैसे हुई?
हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखने वाले महर्षि व्यास के जन्म दिवस के रूप में गुरु पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है। आषाढ़ महीने में महर्षि व्यास ने अपने पांच शिष्यों को श्री भागवत पुराण की शिक्षा दी थी। महर्षि व्यास के पांच शिष्यों ने अपने गुरु के सम्मान में उनके जन्मदिवस आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया और अपने गुरु की पूजा की, तब से लेकर आज तक हिंदू धर्म में हर साल आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है और इस दिन को गुरुपूजा का विशेष महत्व बताया गया है। वर्ष 2023 में गुरु पूर्णिमा सोमवार, 3 जुलाई को मनाई जाएगी।
महर्षि व्यास कौन थे ?
महर्षि व्यास एक प्रमुख हिंदू ऋषि थे जिन्हे वेद व्यास भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने हिंदू धर्म के चार मुख्य ग्रंथों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद को लिखा था। जिस कारण वे वेद व्यास के रूप में भी जाने जाते हैं। महर्षि व्यास का जन्म महाभारत काल में हुआ था और उन्हें महाभारत के एक महत्वपूर्ण चरित्र के रूप में भी दिखाया जाता है। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने महाभारत के इतने विस्तृत और महत्वपूर्ण किंतु संघटित रूप में प्रस्तुत करने का कार्य किया था कि उन्हें वेद व्यास के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। उन्होंने अनेक ऋषियों के साथ मिलकर भारतीय साहित्य को संगठित और प्रचलित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
हिंदू धर्म में गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊंचा होता है क्योंकि एक गुरु ही अपने शिष्य के सभी विकारों को दूर करके उसे अच्छी शिक्षा तथा अच्छे जीवन मूल्यों कि सीख देता है। एक गुरु ही मनुष्य को जीवन का उचित मार्ग दिखाता है। और उसे सफलता की ओर ले जाता है। आवश्यकता पड़ने पर एक गुरु अपने शिष्य के लिए भगवान के सामने भी खड़ा हो सकता है। प्राचीन काल से भारत में शिक्षा पद्धति गुरुकुल की रही हैं जिसमें शिक्षा के योग्य होते ही सभी बच्चों को गुरुकुल भेज दिया जाता था और जहां पर गुरु ही उनको माता-पिता की तरह स्नेह और शिक्षा देते थे। शिक्षा पूर्ण होने के बाद ही शिष्य को अपने माता पिता के पास वापस भेजा जाता था।
गुरू पूर्णिमा की दिन क्या क्या करना चाहिए ?
गुरु पूर्णिमा की सुबह जल्दी उठ जाना चाहिए। स्नान के बाद भगवान शिव और सूर्यदेव की पूजा के साथ दिन प्रारम्भ करना चाहिए। । सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना चाहिए। तांबे के लोटे में जल भरें, चावल और लाल फूल डालें। इसके बाद ऊँ सूर्याय नम: मंत्र जप करते हुए अर्घ्य अर्पित करें। अपने माता-पिता का आशीर्वाद लें, क्योंकि माता-पिता ही हमारे पहले गुरु होते हैं। इसके बाद अपने गुरु का आशीर्वाद लें और अपने सामर्थ्य से गुरु को गुरु दक्षिणा अर्पण करें। गुरु व्यास के साथ-साथ शुक्रदेव और शंकराचार्य आदि गुरुओं का भी आव्हान करें और ''गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये'' मंत्र का जाप करें। इस दिन गुरु पूजन से गुरु बृहस्पति भी शुभ होते है।
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