इंद्रजीत और लक्ष्मण का युद्ध । लक्ष्मण जी का मूर्छित होना
लक्ष्मण मूर्छा ( रामायण सम्पूर्ण कहानी हिंदी में )
लक्ष्मण मूर्छा |
मेघनाद (इंद्रजीत) की ललकार
अगले दिन सूर्योदय होने के बाद दोनों सेनाएं फिर से रणभूमि में आ जाती है। राम लक्ष्मण को नागपाश में बांधकर इंद्रजीत का उत्साह और आत्मविश्वास और भी बढ़ चुका था । इसलिए वह मेघों की तरह गरजता हुआ युद्ध भूमि में आता है। राम लक्ष्मण को ललकारते हुए कहता है कि, अभी तक नागपाश के घाव भरे नहीं क्या ? जो दोनों भाई मेरे सामने आने से डर रहे हैं। आज मैं तुम्हारी उससे भी अधिक दुर्दशा करूंगा। मेघनाथ के मुंह से यह ललकार सुनते लक्ष्मण भी आवेश में आ जाते हैं और श्री राम से युद्ध में आने के लिए आज्ञा मांगते हैं। श्रीराम पिछले दिन के युद्ध में मेघनाथ के रणनीति को समझ चुके थे इसलिए वह लक्ष्मण को सावधान तथा सचेत रहकर युद्ध करने का परामर्श देकर युद्ध में जाने की आज्ञा देते हैं।
इंद्रजीत और लक्ष्मण का युद्ध
लक्ष्मण और मेघनाथ फिर से आमने सामने आ जाते हैं और दोनों वीर कुमारों में फिर से युद्ध शुरू हो जाता है। दोनों योद्धा एक दूसरे पर तीखे बाणों से प्रहार कर रहे थे तथा एक दूसरे के बाणों को काट रहे थे। दोनों के बीच में लंबे समय तक युद्ध चलता रहता है लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकलता। कभी लक्ष्मण जी का पलड़ा भारी होता तो कभी इंद्रजीत का। पूरा दिन युद्ध लड़ते-लड़ते संध्या हो जाती हैं और हमेशा की तरह इंद्रजीत अपने आसुरी विद्या का प्रयोग करके लड़ने लगता है। इंदरजीत अपनी माया से अदृश्य होकर युद्ध करने लगता है। अदृश्य होने के बाद इंद्रजीत लक्ष्मण पर सभी दिशाओं से बार-बार तीरों की बरसात कर रहा था, जिससे लक्ष्मण जी विचलित हो जाते हैं। इंद्रजीत द्वारा कपट युद्ध करने के कारण लक्ष्मण जी श्री राम के पास आते हैं और उनसे कहते हैं कि मेघनाथ फिर से कपट युद्ध पर उतर आया है। इसलिए मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके इंद्रजीत को समाप्त कर दूं।
लेकिन श्री राम लक्ष्मण जी के निवेदन को न मानकर उन्हें ब्रह्मअस्त्र के प्रयोग करने से मना कर देते हैं। श्री राम कहते हैं कि लक्ष्मण, ब्रह्मास्त्र बहुत अधिक विनाशकारी अस्त्र है। इसलिए इसका प्रयोग किसी भी युद्ध में नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इससे तीनों लोको में विनाश की ज्वाला भड़क उठेगी।
लक्ष्मण जी का मूर्छित होना । लक्ष्मण मूर्छा
श्रीराम के मना करने पर लक्ष्मण वापस रणभूमि में लौट जाते हैं और मेघनाथ से युद्ध करने लगते हैं। अदृश्य रूप में इंद्रजीत अलग-अलग दिशा से लक्ष्मण पर बाण चला रहा था कभी वह आकाश में जाकर युद्ध करता तो कभी सामने आकर युद्ध करता। उसके कपट युद्ध से लक्ष्मण जी विचलित हो चुके थे, ऐसे में मौका पाकर इंद्रजीत ने अदृश्य होकर आसमान में चला जाता है। घात लगाकर इंद्रजीत वीर घातनी अमोघ शक्ति का प्रयोग लक्ष्मण जी पर करता है। हनुमान जी यह सब देख रहे थे इसलिए है उस शक्ति को रोकने का प्रयास करते हैं लेकिन असफल हो जाते हैं और इंद्रजीत द्वारा चलाई गई वह अमोघ शक्ति लक्ष्मण जी के पीठ के नीचे आघात करती है। शक्ति लगते ही लक्ष्मण जी के हाथों से धनुष छूट जता है और वे मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ते हैं।
--- लक्ष्मण के मूर्छित होने के बाद इंद्रजीत उनके मूर्छित शरीर को उठाकर ले जाने की कोशिश करता है लेकिन शेषनाग के अवतार लक्ष्मण जी को वह उठा नहीं पाता । तब हनुमान जी उन्हें दुत्कार कर लक्ष्मण जी को उठाकर वायु मार्ग से युद्ध भूमि से दूर ले आते हैं। लक्ष्मण जी को मूर्छित देखकर श्रीराम भी दौड़े दौड़े चले आते हैं और हनुमान से पूछते हैं कि क्या हुआ। हनुमान जी श्री राम को बताते हैं कि मेघनाथ ने छुप कर उन पर एक मायावी शक्ति का प्रयोग किया है जिससे लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए हैं। तब श्रीराम ने पूछा की ऐसी कौन सी शक्ति थी। जो मेरे वीर लक्ष्मण को मूर्छित कर सकती है। श्रीराम की अधीरता को देखते हुए विभीषण जी उन्हें बताते हैं कि मेघनाद ने वीर घातनी शक्ति का प्रयोग किया है। यह शक्ति उसने अपनी कड़ी तपस्या से प्राप्त की थी और इस शक्ति के वार से कोई भी मनुष्य बच नहीं पाता है।
----- श्री राम का दुख भरा चेहरा देखकर जामवंत जी ने लक्ष्मण के मूर्छित शरीर की जांच की जिसके बाद वह बताते है कि लक्ष्मण के शरीर में अभी भी कुछ प्राण शेष है। लेकिन मेरे पास कोई उपचार नहीं है। तब सुग्रीव विभीषण से इसका कोई उपचार बताने के लिए कहते हैं तो विभीषण जी कहते हैं कि अगर किसी चिकित्सक से जांच करवाई जा सके तो शायद कोई संभावना हो सकती है। सुग्रीव जी कहते हैं जहां एक और लहराता अथाह समुद्र है तथा दूसरी और शत्रु पक्ष ऐसे में कोई चिकित्सक कहां से मिलेगा। लेकिन तभी विभीषण जी बताते है कि लंका में रावण का एक राज वैद्य सुषेण रहता है जो कि संभवत उनकी सहायता कर सकता है। लेकिन उन्हें इस समय लंका से लेकर आना असंभव है। विभीषण की यह बात सुनकर हनुमान जी कहते हैं कि असंभव को संभव बनाना हनुमान का काम है ।कृपया आप बताइए कि वह वैद्य सुषेण का निवास स्थान कहां है, मैं उन्हें लंका से लेकर आऊंगा।
लंका से वैद्यराज शुषैण को लाना
विभीषण के बताने पर हनुमान जी श्रीराम से आज्ञा लेकर जाते है और अति सूक्ष्म रूप धारण करके लंका में प्रवेश करते हैं। वे एक गुप्तचर की भांति वैद्य सुषेण का मकान खोज लेते हैं। तब हनुमान जी अपना विराट रूप धारण करते हैं और वैद्यराज शुषैण को उनके घर सहित उठाकर लंका से ले आते हैं और श्रीराम के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। श्री राम और विभीषण जी उनसे लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा करने का निवेदन करते हैं। लेकिन खुद को इस तरह उठा लाने से वैद्यराज सुषेण श्रीराम से कहते हैं कि मैं आपकी कोई सहायता नहीं करूंगा, क्योंकि यह मेरी देशभक्ति के खिलाफ है। आप शत्रु पक्ष के हैं और मैं महाराज रावण का राजवैद्य हूं, इसलिए मेरा धर्म बनता है कि मैं अपने राजा के शत्रु की कोई सहायता ना करूं।
--- तब विभीषण जी वैद्यराज सुषेण को उनके चिकित्सक धर्म का वृतांत बताते है और कहते हैं कि आप का एकमात्र धर्म यह है कि अपने रोगी का उपचार करना और उसके प्राणों की रक्षा करना। यदि आप अपने इस चिकित्सक धर्म का पालन नहीं करेंगे तो यह आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन होगा। इस वजह आपके द्वारा दी गई औषधियां भी असर हीन हो जाएंगी। विभीषण जी से चिकित्सक धर्म का यह सार सुनकर सुषेण वैद्य श्रीराम की सहायता करने के लिए सहमत हो जाते हैं और वह लक्ष्मण के मूर्छित शरीर की जांच करने लगते हैं। जांच करने के बाद वैद्य सुषेण बताते हैं कि लक्ष्मण जी के शरीर में प्राण अभी शेष हैं लेकिन सूर्य उदय से पहले यदि उन्हें उपचार नहीं दिया गया तो उनकी जान बचाना असंभव हो जाएगा। तब वैद्यराज उसे बताते हैं कि उनके पास वह औषधि नही है जो कि लक्ष्मण जी को स्वस्थ कर सके। वैद्य की बात सुनकर श्रीराम और भी अधीर हो जाते हैं उन्हें ऐसे देख कर वैद्यराज सुषेण बोलते हैं कि, हे रघुनाथ, धीरज रखिए लक्ष्मण के प्राण बचाने के एकमात्र उपाय है लेकिन बहुत ही कठिन है।
हनुमान का संजीवनी लेने के लिए जाना
तब बड़ी अधीरता से हनुमान जी पूछते हैं कि कृपया करके मुझे वह उपाय बताइए तो में अपने प्राण देकर भी वह उपाय करूंगा । तब वैद्य बताते हैं कि कैलाश पर्वत और हिमालय पर्वत के बीच में द्रोणागिरी नामक पर्वत श्रृंखला है । उसी पर्वत श्रृंखला मैं एक ऐसा पर्वत है जिस पर कई तरह की गुणकारी आयुर्वेदिक औषधियां उगती है। उन्हीं में से एक संजीवनी बूटी भी है जिसे यदि समय पर दिया जाए तो मृत शरीर में भी प्राण आ सकते हैं। तब वैद्यराज यह भी कहते हैं कि तुम्हें सूर्योदय से पहले ही वह संजीवनी बूटी लेकर वापस आना होगा यदि सूर्योदय हो गया तो लक्ष्मण के प्राण बचाना असंभव है। तब हनुमान जी श्री राम को हौसला बंधाते हुए कहते हैं कि धीरज रखिए स्वामी। यदि मैं सूर्योदय से पहले संजीवनी लेकर नहीं आ पाया तो अपना यह मुख आपको कभी नहीं दिखाऊंगा । यह कहकर हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए प्रस्थान करते हैं।
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