श्री राम द्वारा ताड़का वध तथा अहिल्या का उद्धार | Tadka Vadh aur Ahilya ki Kahani

श्री राम द्वारा ताड़का वध तथा अहिल्या का उद्धार | Tadka Vadh aur Ahilya ki Kahani

श्री राम द्वारा ताड़का का वध | श्री राम द्वारा अहिल्या का उद्धार 

ताड़का वध की कहानी | अहिल्या के उद्धार की कहानी 

श्रीराम तथा चारों भाइयों की शिक्षा पूर्ण होने के चारों भाई राजमहल में वापस लौट जाते हैं। उसके कुछ ही समय पश्चात महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ के महल में आते हैं तथा राजा दशरथ से कहते हैं कि उन्हें श्री राम चाहिए ताकि उनके यज्ञ तथा अनुष्ठानों की असुरों तथा राक्षसों से रक्षा की जा सके । राक्षस हमेशा हमारे यज्ञ में बाधा डालते है और यज्ञ को पूरा नहीं होने देते। इसलिए हम राम को अपने साथ ले जाना चाहते हैं ताकि वह हमारे यज्ञ तथा अनुष्ठानों रक्षा कर सकें।

राक्षसी ताड़का का वध 

श्री राम तथा लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम में चले जाते हैं। जहां पर विश्वामित्र श्री राम को बताते हैं कि एक राक्षसी ताड़का उनके हर यज्ञ में विघ्न डालती है तथा उसका विनाश करना आवश्यक है --
राक्षसी तड़का वध

यह माना जाता है कि राक्षसी ताड़का एक यक्षिणी थी। महा पुराण में वर्णित है कि यक्षिणीया स्वयं मां दुर्गा की शक्ति का अंश होती है इसलिए वे बहुत शक्तिशाली होती है। इसलिए श्री राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ राक्षसी ताड़का के निवास स्थान पर जाते हैं और उसको ललकारते हैं। ललकार सुनकर राक्षसी तड़का बाहर निकलती है और इनपर हमला करने लगती है काफी समय तक युद्ध के बाद श्री राम अपने एक बाण से राक्षसी तड़का का अंत कर देते है।

उसके बाद विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण को अपने आश्रम में ठहर आते हैं। अगले दिन जब ऋषि विश्वामित्र यज्ञ कर रहे होते हैं तब सुबाहु तथा मारीच नाम के दो राक्षस उनका यज्ञ भंग करने के लिए कुछ राक्षसों को साथ ले आते हैं। लेकिन श्री राम और लक्ष्मण पहले से ही वहां यज्ञ की रक्षा में तैनात होते हैं और मैं दोनों अपने दिव्य बाणों से सभी राक्षसों का अंत कर देते हैं।

अहिल्या का उद्धार

अहिल्या स्वयं ब्रह्म देव की पुत्री थी। अत्यंत रूपवती होने के कारण देवराज इंद्र की नियत अहिल्या पर खराब हो गई। इसके पश्चात भी अहिल्या की शादी महर्षि गौतम से हो गई इससे देवराज इंद्र बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने उन दोनो से बदला लेने की सोची।

अहिल्या का उद्धार

एक रात देवराज इंद्र ने मुर्गे का रूप धारण करके ऋषि गौतम के आश्रम के बाहर जाकर बांग देनी शुरू कर दी। उसकी आवाज सुनकर गौतम को लगा कि सुबह हो गई है और वह प्रतिदिन की तरह अपना कमंडल लेकर गंगा स्नान करने के लिए चल पड़ते है। पीछे से देवराज इंद्र ऋषि गौतम का वेश धारण करके अहिल्या के पास चले जाते हैं और उसके साथ समागम करते है । जब ऋषि गौतम गंगा तट पर स्नान करने के लिए पहुंचते हैं तो उन्हें यह आभास होता है कि अभी सुबह हुई नहीं है। अवश्य ही किसी ने उनके साथ छल किया है। इसीलिए वह तुरंत अपने आश्रम की तरफ चल देते हैं।

ऋषि गौतम अपने आश्रम पहुंचते हैं तो वह देखते हैं कि उन्हीं के भेष में एक व्यक्ति उनकी कुटिया से निकल रहा है। ऋषि गौतम परम तपस्वी थे इसलिए वह छल वेश में भी देवराज इंद्र को पहचान जाते हैं और उसे कुरूप होने का श्राप देते हैं। यह सुनकर अहिल्या अपनी कुटिया से बाहर निकलती है तब वह समझ जाती है कि उसके साथ छल हुआ है और अपने पति ऋषि गौतम के पैरों में गिरकर क्षमा मांगने लगती है। लेकिन क्रोध में भरे हुए श्री गौतम ने उन्हें क्षमा नहीं किया और तुरंत पत्थर में बदलने का श्राप दिया। बार-बार मिन्नत करने के बाद ऋषि गौतम को अहिल्या पर दया आ जाते हैं और वह उसके मुक्ति का मार्ग बताते हैं। जब भगवान विष्णु राम अवतार में पृथ्वी पर आएंगे तब वह अपने चरणों से स्पर्श करके तुम्हें इस श्राप से मुक्त करेंगे। 

ताड़का वध के बाद जब महर्षि विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण के साथ जनकपुरी की तरफ रवाना होते हैं तब वह ऋषि गौतम के आश्रम से होकर गुजरते हैं जहां पर वह श्री राम को अहिल्या की कहानी बताते हैं। तब श्रीराम अपने पैरों से स्पर्श करके पाषाण में परिवर्तित हो चुकी  अहिल्या को शाप मुक्त कर देते हैं। और इस तरह भगवान राम के द्वारा अहिल्या का उद्धार हो जाता है।

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