मातृ पितृ भक्त श्रवण कुमार की कथा । Shravan Kumar Story in Hindi

मातृ पितृ भक्त श्रवण कुमार की कथा । Shravan Kumar Story in Hindi

श्रवण कुमार कौन थे ? | श्रवण कुमार की सम्पूर्ण कहानी 

(Who was Shravan Kumar in Hindi)

श्रवण कुमार कौन थे ? 

श्रवण कुमार का नाम उनकी मातृ-पितृ भक्ति के कारण जाना जाता है । वह अपने अंधे माता पिता के एकलौती संतान थे। एक बार जब वह अपने माता-पिता के लिए जलाशय से जल लेने के लिए गए तब राजा दशरथ के एक बाण के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। जब भी बात माता-पिता की सेवा करने की आती है तो श्रवण कुमार का नाम सबसे पहले आता है।


मातृ पितृ भक्त श्रवण
मातृ-पितृ भक्त, श्रवण कुमार

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श्रवण कुमार की कथा 

यह बात त्रेतायुग की है जब भगवान राम के जन्म से थोड़े समय पहले श्रवण कुमार नाम का एक लड़का था। श्रवण कुमार के माता पिता अंधे थे इसलिए उन्होंने बड़ी ही मुश्किलों और कठिनाइयों से लड़ते हुए श्रवण कुमार को पाला था। इसलिए जब श्रवण  कुमार लायक हो गए तब वह अपने माता पिता की सेवा करने लगे ।  

एक बार श्रवण कुमार के माता-पिता ने इच्छा जताई कि वे तीर्थ धाम की यात्रा करना चाहते हैं। तब श्रवण बांस की दो बड़ी-बड़ी टोकरिया लेकर आए और उन्हें बीच में एक मजबूत लकड़ी से बांध दिया। इस तरह वह एक तराजू की तरह बन गया जिसमें उन्होंने एक टोकरी में अपनी माता को बिठाया था तो दूसरी टोकरी में अपने पिता को बिठाया और लकड़ी के बीच मैं अपना कंधा लगाकर उठा लिया और अपने माता पिता को तीर्थ धाम की यात्रा पर लेकर चले गए। जब लोगों ने यह देखा कि एक पुत्र अपने अंधे माता पिता कि किस तरह सेवा कर रहा है तो उनका नाम मातृ पितृ भक्त श्रवण के रूप में प्रख्यात हुआ।   अधिक पढ़े -

श्रवण हर रोज काम करने के लिए घर से निकल जाते थे। इसके बाद वह जंगल से लकड़ियां काटने के लिए जाते और अपना चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियां जंगल से बटोर कर लाते। उसके बाद चूल्हा जलाने के बाद वह अपने माता-पिता के लिए खाना बनाते। श्रवण इतनी मेहनत करते देख उनके माता-पिता हमेशा यह सोचते थे कि वह कब इस उलझन से मुक्त हो पाएंगे। श्रवण की माता घर के काम करने के लिए श्रवण को मना करती लेकिन फिर भी सरवन कुमार अपना कर्तव्य मानकर घर और बाहर का हर काम स्वयं करते थे। 

श्रवण कुमार की मृत्यु कैसे हुई थी?

एक रोज श्रवण कुमार खाना बना रहे थे। तब उनके माता-पिता ने उनसे कहा कि उन्हें प्यास लगी है। अपने माता-पिता की प्यास बुझाने के लिए श्रवण कुमार नजदीकी जलाशय से जल लेने के लिए चल पड़ते हैं। जब श्रवन जलाशय से जल भर रहे थे तब उनके बर्तन से ऐसी आवाज निकल रही थी जैसे कोई जानवर पानी पी रहा हो। 

ठीक उसी समय अयोध्या नगरी के राजा दशरथ शिकार के लिए जंगल में आए हुए थे। राजा दशरथ के पास शब्दभेदी बाण चलाने की कला थी जिसमें वह केवल ध्वनि सुनकर अपने बाण को निशाने पर मार सकते थे। श्रवण कुमार पानी भर रहे थे उनके बर्तन से निकलने वाली ध्वनि जब दशरथ ने सुनी तो उन्होंने सोचा कि वह कोई पशु है जो कि जल पी रहा है। यही सोचकर राजा दशरथ ने उस ध्वनि की तरफ अपना बाण छोड़ दिया। जब वह बाण श्रवण कुमार के शरीर पर लगा तो उन्होंने जोर से चिल्लाया। श्रवण कुमार के चिल्लाने की आवाज सुनकर राजा दशरथ को आभास हुआ कि उन्होंने किसी मनुष्य पर बाण चला दिया है। अपने घोड़े से उतरकर राजा दशरथ तुरंत उस जगह पर पहुंचते हैं जहां पर श्रवण घायल अवस्था में पड़े थे। राजा दशरथ को अपने किए पर ग्लानि महसूस होती है और वह मन ही मन बहुत दुखी होते हैं। और सरवन कुमार से क्षमा मांगने लगते हैं। श्रवण कुमार उन्हें धीरज बंधाते हुए कहता है कि महात्मा आप जो भी हो मेरा केवल इतना काम कर दीजिए मेरे माता पिता अंधे हैं तथा वह नजदीकी कुटिया में मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। आप यह जल ले जाइए और उनको पिला दीजिए। यह कहकर श्रवण अपने प्राण त्याग देते है। 

दशरथ को मिला था पुत्र वियोग का श्राप

अपना मुख शर्म से नीचा करके राजा दशरथ श्रवण कुमार से वह जल का पात्र लेकर उसके माता-पिता के पास पहुंचते हैं। वहां पहुंचकर जब राजा दशरथ उन्हें जल पीने के लिए कहते हैं तब वह दोनो उनसे पूछते हैं कि उनका बेटा श्रवण कहां है। तब मन में दुखी होते हुए गिलानी से भरपूर राजा दशरथ उन्हें सारा वृतांत बताते हैं कि वह उनके अपराधी हैं तथा उनके फूल के कारण उनके पुत्र श्रवण कुमार की मृत्यु हो चुकी है। अपने इकलौते पुत्र की मृत्यु की खबर सुनकर दोनों माता-पिता बुरी तरह से रोने लगे रोते-रोते श्रवण कुमार की माता ने अपने प्राण त्याग दिए। तब श्रवण के पिता ने राजा दशरथ से कहा। हे राजन तुम्हारे एक भूल के कारण मेरे पूरे परिवार का विनाश हो गया पहले मेरा पुत्र मारा गया और अब मेरी पत्नी ने भी प्राण त्याग दिए तो अब मैं भी अपने प्राण त्यागने जा रहा हूं। इसलिए मैं तुझे श्राप देता हूं कि जिस तरह आज मैंने अपने पुत्र के वियोग में अपने प्राण त्यागे हैं उसी तरह तू भी भविष्य में एक दिन अपने पुत्र के वियोग में प्राण त्याग देगा। राजा दशरथ को यह श्राप देते हुए श्रवण के पिता भी अपने प्राण त्याग देते हैं। उसके बाद मैं दुख और ग्लानि से भरे हुए राजा दशरथ उन तीनों का अंतिम संस्कार करते हैं।

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