वानर सेना द्वारा सीता की खोज | हनुमान द्वारा सागर पार करना
सम्पूर्ण रामायण की कहानी हिंदी में ( Sita ki khoj in Hindi )
सीता की खोज |
लक्ष्मण का सुग्रीव पर क्रोध
लगभग चार माह बीत जाने के बाद भी सुग्रीव श्री राम के पास नहीं आया और ना ही उसने अपने किसी दूत के द्वारा उनको कोई संदेश भेजा। सुग्रीव के इस रवैया से श्रीरम को लगने लगा कि शायद सुग्रीव अपने मित्रता के वचन को भूल गया है और वह अपना वचन मानने से चूक रहा है यही सोचकर श्री राम ने सुग्रीव को चेतावनी देने के लिए लक्ष्मण जी को भेजा कि वह किष्किंधा नगरी जाकर सुग्रीव को उनकी मित्रता के वचन की याद दिलाए और सीता माता की खोज में सहायता करने की जो उन्होंने शपथ ली थी उसे पूरा करें। श्रीराम के इन वचनों से लक्ष्मण जी आग बबूला होकर किष्किंधा नगरी के लिए प्रस्थान करते है। उनके किष्किंदा जाते ही सारी वानर सेना इधर-उधर डर कर भागने लगती हैं, नगरवासी अपने-अपने घरों में छुप जाते हैं। तब हनुमान तथा सुग्रीव के मित्रगण लक्ष्मण जी को युक्ति से शांत करवाते हैं और सुग्रीव के लिए क्रोध ना करने का अनुरोध करते हैं। लक्ष्मण जी द्वारा श्री राम का संदेश पाकर सुग्रीव को अपने भूल पर पछतावा होता है और वह श्री राम की सेवा में अपने वानर दल को एकत्रित करके चले जाते हैं। श्री राम के पास जाकर सुग्रीव अपने वचन पूर्ति में विलंब होने के लिए क्षमा मांगते हैं और कहते हैं कि हम आज से ही अपने वानर दल की सहायता से सीता माता की खोज के इस अभियान का श्रीगणेश करेंगे।
सीता की खोज अभियान की शुरुआत
ऋषि मुख पर्वत के शिखर पर एक सभा आयोजित की जाती है जहां पर वानरराज सुग्रीव द्वारा अपने वानर दलों को चारों दिशाओं में सीता माता की खोज के लिए संगठित करके भेजा जाता है। उन्हीं में से दक्षिण दिशा की तरफ वानर दल जाता है जिसमें युवराज अंगद, जामवंत, नल, नील, हनुमान तथा बहुत से वानर सैनिक होते हैं। वे दक्षिण दिशा की तरफ भारत देश के अंतिम छोर तक चले जाते हैं जहां पर आगे प्रशांत महासागर था। लेकिन अथाह समुंदर के अतिरिक्त उन्हें सीता माता की खोज के बारे में तनिक भी संकेत नहीं मिला था। इसलिए सभी निराश होकर वही समुद्र तट पर अपने स्वामी का कार्य पूरा न कर पाने के निराशा में आत्मदाह की इच्छा से वहीं पर बैठ जाते हैं।
जटायु का भाई संपाति
वानर दल को ऐसे निराश होते देख वही पत्थर की गुफा के पास बैठा संपाती नाम का गिद्ध जोर जोर से हंसने लगता है और कहता है कि आज मुझे खाने के लिए बहुत सारे वानर मिल गए हैं। गिद्ध संपाती को देखकर हनुमान गिद्ध जटायु के बलिदान और उसकी महिमा का बखान करने लगते हैं जिसे सुनकर संपाती गिद्ध को अपने छोटे भाई जटायु का स्मरण हो आता है। गिद्ध संपाती उनसे पूछता है कि तुम लोग कौन हो और जटायु को कैसे जानते हो जटायु तो मेरा छोटा भाई है।
तब हनुमानजी संपाती को बताते है की रावण द्वारा सीता के हरण के समय सीता माता को रावण से बचाने के लिए युद्ध करते हुए महात्मा जटायु वीर गति को प्राप्त हो गए। श्री राम और लक्ष्मण ने एक पिता के भांति उनका संस्कार किया था। अपने भाई जटायु की मृत्यु की खबर सुनकर संपाती शौक में डूब जाता है रोने लगता है। तब बाद में संपाती कहता है कि मैंने भी एक दिन एक राक्षस को विमान में एक रूपवती स्त्री को ले जाते हुए देखा था शायद वह रावण ही था अगर मुझे पता होता कि वह दुष्ट राक्षस मेरे भाई जटायु को मारकर जा रहा है तो मैं उस पापी का वही अंत कर देता।
गिद्ध संपाती सभी वानर दल को कहते हैं कि वह सीता माता को देख सकता है क्योंकि एक गिद्ध की दृष्टि अपार होती है। उन्होंने बताया कि सीता माता यहां समुंद्र पार एक द्वीप है जहां पर वह एक पेड़ के नीचे मायूस बैठी हुई है। इस तरह गिद्ध संपाती की वजह से हनुमान तथा अन्य मानव दल को सीता माता का पता चल जाता है कि वह समुद्र के उस पार लंका नामक द्वीप पर है। सीता माता का पता तो लग गया था लेकिन अब सबके सामने यही प्रश्न था कि 400 कोस का समुंदर पार करके लंका तक कैसे पहुंचा जाए और सीता माता की सुध ली जाए।
हनुमान का लंका प्रस्थान
बहुत देर तक विचार-विमर्श करने के बाद जामवंत जी हनुमान को उनकी शक्तियों का स्मरण कराते हैं कि कैसे उन्होंने अपने बाल्यकाल में सूर्य तक को निगल लिया था। और वह स्वयं भगवान शिव के रूद्र अवतार हैं इसलिए केवल उन्हीं के पास वह शक्ति है जिसके द्वारा हनुमान सौ योजन का समुद्र लांघ कर सीता माता की सुध लेकर आ सकते हैं। तब युवराज अंगद, जामवंत, नल और नील तथा समस्त वानरर दल हनुमान जी की स्तुति करता है और उनको उनकी शक्तियों का स्मरण हो जाता है । जय श्री राम का नारा बोलते हुए हनुमान जी उड़कर लंका की तरफ चल देते हैं।
लंका तक जाने के समुद्र मार्ग में हनुमान जी की भेंट मैनाद पर्वत, एक राक्षसी तथा नागमाता से होती है जिनसे हनुमान जी अपने शक्ति तथा बुद्धि के बल पर निजात पा लेते हैं और सौ योजन का समुंद्र लांघकर लंकापुरी तक सफलतापूर्वक पहुंच जाते हैं।
-यह भी पढ़ सकते है -
श्रवण कुमार की कथा तथा दशरथ को पुत्र वियोग का श्राप
श्री राम जन्म कथा | श्री राम और उनके भाइयों का जन्म
श्री राम द्वारा ताड़का वध तथा अहिल्या का उद्धार
सीता स्वयंवर की कथा। श्रीराम और माता सीता का विवाह
राम वन गमन । श्री राम के वनवास की कहानी
सूर्पनखा की नाक कटना तथा खर-दूषण का वध
सीता हरण और रावण_जटायु का युद्ध
राम जटायु संवाद तथा शबरी के बेर
राम हनुमत मिलन । राम सुग्रीव की मित्रता
सुग्रीव - बाली का युद्ध | श्रीराम के द्वारा बाली का वध
0 टिप्पणियाँ
how can i help you