रामायण का युद्ध। रावण -पुत्र का वध। खर के पुत्र मकराक्ष का वध । रामायण सम्पूर्ण कहानी हिंदी में ( RAMAYAN YUDH IN HINDI )
रामायण का प्रथम दिन का युद्ध बहुत ही महत्वपूर्ण था क्योंकि यही निर्धारित कर सकेगा की विजय अंत में किसकी होगी। रामायण के प्रथम दिन के युद्ध में श्री राम की सेना विजय की तरफ अग्रसर थी क्योंकि पहले ही दिन रावण के कई मुख्य योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए। आइए रामायण के प्रथम दिन के युद्ध में क्या क्या हुआ, विस्तार से जानते है ।
रामायण युद्ध |
सुग्रीव द्वारा वज्रमुष्टि का वध
रावण की सेना का एक महत्वपूर्ण योद्धा वज्रमुष्टि बड़ी निर्दयता से वानर सैनिकों को कुचलता हुआ रणभूमि में विचरण कर रहा था। उसे देखकर सुग्रीव उसके सामने आकर रोक लेता है और अपने साथ युद्ध करने के लिए ललकारता है। चुनौती स्वीकार करके वज्रमुष्टि सुग्रीव से युद्ध करने लगता हैं और दोनों में भीषण युद्ध छिड़ जाता है। दोनों गदा से एक दूसरे पर प्रहार करने लगते हैं बहुत देर तक गदा युद्ध करने यह बात दोनों मल युद्ध करने लगते है। मल युद्ध में सुग्रीव बहुत कुशल थे इसलिए उन्होंने कुछ ही समय में वज्रमुष्टि को पराजित कर दिया । हर हर महादेव का नारा लगाते हुए सुग्रीव ने वज्रमुष्टि को उठाया और दूर फेंक दिया जिस कारण वज्रमुष्टि का अंत हो गया । ऋषभ जामवंत श्रीराम को सुग्रीव द्वारा वज्रमुष्टि के वध की सूचना देते है।
हनुमान के हाथो सेनानायक दुर्मुख का वध
रावण की सेना में एक और महाभट्ट योद्धा था जिसका नाम दुर्मुख था। दुर्मुख पूर्णतया आसुरी शक्तियों से परिपूर्ण था और वह प्रथम दिन में रावण की सेना का सेनानायक भी था। अपनी आसुरी शक्तियों के दम पर वह साधारण वानर सैनिकों को मार रहा था लेकिन बजरंगबली हनुमान उसे रोक लेते हैं बोलते हैं कि सेनानायक तो वह आज तुम्हारी मृत्यु मेरे हाथों से लिखी है। दुर्मुख भी हनुमान को देखते ही पहचान जाता है कि यह वही महाबली हनुमान है जिसने लंका को जलाकर भस्म कर दिया था। उन दोनों में भी भयंकर युद्ध छिड़ जाता है। दोनों कभी गदा से प्रहार करते तो कभी मल्ल युद्ध करने लगते हैं काफी समय तक युद्ध के पश्चात असुर दुर्मुख को बजरंगबली के असीमित शक्तियों का एहसास होने लग जाता है। लेकिन वह चाह कर भी पीछे नहीं हट पाता। इसलिए हनुमान द्वारा उसे पछाड़कर उसका अंत कर दिया जाता है। -- दुर्मुख के वध की सूचना पाकर रावण अचंभित हो जाता है क्योंकि वह मानता था की दुर्मुख का अर्थ स्वयं यमराज का मुख होता है। जिज्ञासा वश रावण पूछता है कि दुर्मुख का वध किसने किया। रावण का मुख्य गुप्तचर सुक उसे बताता है कि दुर्मुख का वध करने वाला कोई और नहीं, लंका जलाने वाला तथा अक्षय कुमार का हंता पवन पुत्र, महाबली हनुमान है। सुग्रीव दुर्मुख के अंत की सूचना श्रीराम को देते है।
लक्ष्मण के द्वारा रावण-पुत्र प्रहस्थ का वध
रावण का छोटा पुत्र प्रहस्थ भी पहले दिन युद्ध करने के लिए रणभूमि में आता है। प्रहस्थ धनुर्विद्या में निपुण था तथा अपने मायावी तीरों से वानर सैनिकों का संहार कर रहा था । उसे देखकर लक्ष्मण जी को लगा कि शायद रावण खुद आ गया है लेकिन विभीषण ने उनको बताया कि यह रावण नहीं बल्कि रावण का पुत्र प्रहस्थ है। ये बड़ा ही मायावी तथा विकट योद्धा है इससे युद्ध करना साधारण सैनिकों के बस की बात नहीं है। यह पूरी वानर सेना का अंत एक ही दिन में करने की क्षमता रखता है। इसलिए इससे रोकना अति आवश्यक है । विभीषण से प्रहस्थ के पराक्रम की बात सुनकर लक्ष्मण जी कहते हैं ठीक है तो रावण के पुत्र के अहंकार को तोड़ने के लिए मैं स्वयं जाता हुं। लक्ष्मण जाकर प्रहस्थ को युद्ध के लिए ललकारते है। दोनो वीर कुमार में बाणों की जंग छिड़ जाती है। लक्ष्मण से युद्ध करते समय प्रहस्थ ने एक मायावी बाण दूसरी तरफ वानर सैनिकों पर चला दिया जिससे सैकड़ों वानर सैनिक मर गए। यह देखकर लक्ष्मण जी को रावण पुत्र प्रहस्थ पर बहुत अधिक क्रोध आता है। तुम जीवित रहने के लायक नही हो, यह कहकर लक्ष्मण एक प्राणघातक बाण उस पर चला देते है। बाण लगते ही रावनपुत्र प्रहस्थ वही ढेर हो जाता है।
अपने पुत्र प्रहस्थ की मृत्यु की खबर सुनकर रावण शौक स्तब्ध रह जाता है और क्रोधित होकर स्वयं युद्ध भूमि में जाकर अपने पुत्र के मृत्यु का बदला लेने की बात कहता है। लेकिन तभी मकराक्ष उन्हें रोक लेता है और कहता है कि महाराज मुझे जाने दीजिए क्योंकि राम सबसे पहले मेरा शत्रु है। राम ने मेरे पिता खर का पंचवटी में वध किया था , इसीलिए सबसे पहले मुझे अधिकार है कि मैं राम से युद्ध करके उसका मस्तक काट कर अपनी माता के लिए लाऊं। इसलिए महाराज रावण, मुझे आज्ञा दीजिए की मैं रणभूमि में जाकर राम से युद्ध करके उसका मस्तक काट कर अपनी माता के चरणों में डाल दूं। तभी मेरे प्रतिशोध की अग्नि शांत होगी। यह जानकर रावण खर के पुत्र मकराक्ष को युद्ध में जाने की आज्ञा देता है।
श्रीराम के द्वारा खर पुत्र मकराक्ष का वध
रावण से आज्ञा लेकर मकराक्ष युद्ध भूमि में आता है और श्री राम को ललकार ने लगता है। उसकी ललकार सुनकर लक्ष्मण उसे रोक लेते हैं और बोलते हैं कि श्री राम से युद्ध करने से पहले तुम्हें मुझ से युद्ध करना पड़ेगा। पहले मुझसे युद्ध जीत लोगे तो श्री राम के भी दर्शन हो जाएंगे। तब मकराक्ष कहता है कि लक्ष्मण मैं तुमसे नहीं बल्कि तुम्हारे भाई और मेरे पिता के हत्यारे राम से युद्ध करना चाहता हूं। मैंने अपनी माता को वचन दिया है कि मैं युद्ध में राम का सर काटकर उनको सौंप दूंगा तथा उसके खोपड़ी में जल भरकर अपने पिता का दर्पण करूंगा तभी मेरे मृत पिता खर की आत्मा को शांति मिलेगी। उसके ऐसी बातें सुनकर लक्ष्मण अंगद आदि उसका उपहास उड़ाने लगते हैं लेकिन तभी श्रीराम ने उन्हें रोक देते है यह कहकर की किसी के भी संकल्प का उपहास करना अच्छी बात नहीं है।
तब श्री राम मकराक्ष से पूछते हैं कि तुम्हें मेरा मस्तक क्यों चाहिए और तुम कौन हो अपना परिचय दो। तब मकराक्ष बताता है कि वह है राक्षस खर का पुत्र है जिसकी हत्या श्रीराम ने पंचवटी में की थी। और अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही मैं तुम से युद्ध करने आया हूं। श्री राम उसकी चुनौती को स्वीकार करते हैं और युद्ध करने लगते हैं। मकराक्ष तीर पर तीर चलाया जा रहा था लेकिन श्री राम बड़े ही सहज तरीके से उसके सभी बाणों को निष्फल कर रहे थे। फिर मकराक्ष अपनी मायावी आसुरी विद्या का प्रयोग करने लगता है जिससे एक बार श्रीराम भी प्रभावित हो जाते हैं लेकिन विभीषण से जानने के बाद मैं उससे मुक्ति पा लेते हैं। अंत में श्री राम प्राणघातक बाण के द्वारा मकराक्ष का भी अंत कर देते हैं.|
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