आखिर क्यों हुआ था भगवान शिव और भगवान विष्णु का महायुद्ध | VISHNU AND SHIV FIGHT IN HINDI

नारायण तथा महादेव का युद्ध | विष्णु तथा शिव का महायुद्ध  | विष्णु तथा महादेव बीच महायुद्ध

Vishnu or Mahadev ka Yudhh in Hindi| Narayan or Shiv ki ladayi

क्या आप जानते है की हिंदू धर्म के सबसे शक्तिशाली भगवान माने जाने वाले भगवान शिव और भगवान विष्णु के बीच कई बार युद्ध हुआ है। हिंदू धर्म में सृष्टि संचालन त्रिदेव करते है जिसमे ब्रह्मा, विष्णु और शिव । ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की है, भगवान विष्णु सृष्टि का पालन करते है तथा भगवान शिव सृष्टि के तथा नकारात्मकता के विनाशक है। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियां पैदा हुई जिनके कारण भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच युद्ध हुआ।

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देवी सती की मृत्यु के पश्चात भगवान शिव इतने आहत हुए कि उन्होंने संसार से अपना सारा मोह त्याग दिया और अनासक्त होकर रहने लगे। कहीं वर्षों तक भगवान शिव देवी सती के वियोग में इधर-उधर बेसुध होकर भटकते रहे। यहां तक भगवान शिव को त्रिदेव के रूप में अपने कर्तव्यों का भी बोध नहीं रहा था। 

भगवान शिव और भगवान विष्णु का महायुद्ध
भगवान शिव और भगवान विष्णु का महायुद्ध

भगवान शिव के सृष्टि से अनासक्त होने के कारण भगवान विष्णु को त्रिमूर्ति के खंडित होने और संसार में अराजकता और नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव का भय होने लगा था। उन्होंने कई बार शिव को संसार के प्रति आसक्त बनाने का प्रयास किया लेकिन जब भी विष्णु भगवान शिव को संसार के प्रति जागृत करने  तथा उनकी अनासक्ति को दूर करने का प्रयास करते हैं, तो  भगवान शिव क्रोधित होकर उन्हें वहां से चले जाने के लिए कहते हैं और यह कहते थे कि सती की मृत्यु के लिए वे दोनों भी जिम्मेदार हैं लेकिन फिर भी भगवान विष्णु को महादेव वापस लाने की एक तरकीब सूझी। 

तब भगवान विष्णु ने अपने वाहन  गरुड़  को आदेश दिया कि वह नाग लोक में जाकर सभी नागों पर हमला करें। क्योंकि भगवान विष्णु जानते थे कि अनासक्ति में भी भगवान शिव अपने भक्तों तथा अपने शरणागत पर होने वाले अत्याचार को नहीं देख सकते। इसलिए भगवान शिव को पशुपतिनाथ भी कहा जाता है। जब गरुड़  ने नाग लोक पर हमला किया तो सभी नाग महादेव से सहायता मांगने लगे और महादेव की शरण में आ गए।  अन्य पोस्ट पढ़े -

फिर जब गरुड़ नागों के मुखिया नाग  वासुकि पर हमला करने के लिए आगे आया तो महादेव उन दोनों के बीच आ गए। भगवन शिव ने गरुड़ पर क्रोधित होते हुए चेतावनी दी की वह जो भी कर रहा है वह अन्याय है।  इसपर गरुड़ कहता है की स्वयं भगवन विष्णु ने उन्हें नागो पर हमला करने का आदेश दिया है तो वह भगवन विष्णु के आदेश का पालन अवश्य करेगा। गरुड़ की यह बात सुनकर भगवान शिव को अत्यंत क्रोध आ गया। जैसे ही शिव ने गरुड़ को दंड देना चाहा तो गरुड़ ने अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु का आह्वाहन किया। गरुड़ की पुकार सुनकर नारायण (विष्णु ) वहां पर आ जाते है। 

नारायण (विष्णु ) भगवान शिव को समझने को कहते है की पहल नाग लोक की तरफ से हुई थी। और गरुड़ को नागों (सांपो) का संहार करने के लिए मैंने ही कहा था। लेकिन जैसा की हम जानते है की भगवान शिव हमेशा न्याय करते है इसलिए उन्होंने यह कहकर की इसमें गरुड़ का अपराध ज्यादा है वह गरुड़ को मरने के लिए आगे बढ़ते है। तब भगवान विष्णु अपने भक्त गरुड़ की रक्षा करने के लिए महादेव के सामने आ जाते है। अन्य पोस्ट पढ़े -

तब भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच महायुद्ध शुरू हो जाता है। दोनों योद्धा शिव और विष्णु इस सृष्टि के पालनकर्ता तथा विनाशकर्ता है। दोनों की शक्तिया भी एक सामान होने के कारन दोनों समकक्ष कहलाते है। इसलिए उन दोनों के बीच चल  युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकल रहा था। तब युद्ध को समाप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी पूरी शक्ति के साथ भगवान शिव का कंठ (गला) दबा दिया। नारायण की इस हरकत से शिव अत्यधिक  क्रोधित हो गए। उन्होंने विष्णु को पुरे जोर से धक्का मारा जिससे विष्णु थोड़ी पीछे सरक गए। तब भगवान शिव ने क्रोधवश अपना त्रिशूल नारायण (विष्णु ) की तरफ छोड़ दिया। त्रिशूल बहुत वेग से नारायण (विष्णु) के वक्ष (छाती) पर जाकर लगा। 

नारायण (विष्णु  के छाती पर त्रिशूल के वार से महादेव को अपने किये का आभास हुआ  की उन्होंने अपने भक्त और अपने आराध्य विष्णु पर ही त्रिशूल चला दिया। यह बोध होने पर महादेव (शिव) की आँखों में अश्रु (आंसू ) आ जाते है।  और वे तुरंत ही नारायण को त्रिशूल से मुक्त करते है। इस तरह महादेव संसार के प्रति अपनी अनासक्ति को त्याग कर संसार और त्रिमूर्ति के कर्तव्यों के  प्रति आसक्त बन जाते है।   अन्य पोस्ट पढ़े -

त्रिशूल के वार से नारायण (विष्णु के वक्ष पर तीन घाव बन जाते है। और विष्णु द्वारा शिव का कंठ दबाने से शिव जी के कंठ पर उंगलियों के निशान पद जाते है जिसके कारन भगवान शिव को शीति महादेव के नाम से जाना जाने लगा। नारायण (विष्णु) यह जानते थे की शिव को त्रिमूर्ति के कर्तव्यों के प्रति आसक्त करने का यही एक उपाय है। 

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