लक्षमण का चरित्र वर्णन | कितने शक्तिशाली थे लक्ष्मण जी
The Character of Lord Laxman in Hindi | Ramayan me Lakshman Ji ka Charitra | Laxman Character in Ramayan
लक्षमण का चरित्र वर्णन
महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम बताया गया है। श्रीराम भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे। स्वाभाविक है कि श्रीराम का चरित्र भी भगवान के समान आदर्श पुरुष और एक कोमल हृदय वाले इंसान जैसा था। लेकिन श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण जोकि शेषनाग के अवतार के रूप में श्रीराम की लीला में उनका साथ देने के लिए आये थे।लक्षमण जी अपने भाई राम की तरह विनम्र न होकर थोड़े उग्र स्वाभाव तथा सतर्क विचार वाले इंसान के रूप में थे।
लक्ष्मण जी |
लक्ष्मण जी महाराजा दशरथ की पत्नी सुमित्रा के ज्येष्ठ पुत्र थे तथा उनका छोटा भाई शत्रुघन था। जबकि श्री राम माता कौशल्या के एकलौते पुत्र थे जोकि सभी भाइयो में सबसे बड़े थे। भारत देवी केकई के पुत्र थे जो श्रीराम से छोटे थे लेकिन लक्षमण और शत्रुघ्न से बड़े थे। लक्षमण जी बालपन से ही श्रीराम के अधिक चहिते रहे थे। जब भी सभी भाइयो में प्रतियोगिता होती थी तो लक्ष्मण जी हमेशा श्रीराम की तरफ बोलते थे। वे अपने बड़े भाई श्रीराम को अपने भगवान की तरह मानते थे। ज्यादा पढ़े :-
शेषनाग के अवतार लक्षमण
जैसा की रामायण में बताया गया है की लक्षमण जी शेषनाग के अवतार थे अतः लक्षमण जी की अपार शक्ति के बारे में जानने के लिए पहले हमें शेषनाग की शक्ति के बारे में जानना होगा। भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग के ऊपर विश्राम करते है। इसलिए जो शेषनाग स्वयं सृष्टि के पालनहार श्री नारायण का भार सह सकते है वह निश्चित ही अपर बलशाली है। पुराणों में इस बात का भी वर्णन मिलता है की शेषनाग पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते है।
लक्ष्मण जी की शक्ति
लक्ष्मण जी की शक्ति का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है की सीता हरण से पहले लक्ष्मण जी ने कुटिया के आगे अपने तीर से एक रेखा खींच दी थी जिसे लक्ष्मण रेखा के नाम से जाना जाता है। तीनो लोको का विजेता और भगवान शिव का परम भक्त होते हुए भी रावण लक्ष्मण जी के द्वारा खींची गई एक साधारण सी रेखा को नहीं कर पाया था। दूसरी तरफ युद्ध के समय अधिकतर समय युद्ध लक्ष्मण जी ने ही किया था जिसमे उन्होंने लंका के सबसे महान और विकट योद्धा इंद्रजीत (मेघनाद ) तथा अतिकाय जिसने एक बार भगवान शिव के त्रिशूल की निष्प्रभाव किया था उनको हराया था। युद्ध में जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे तब इंद्रजीत उन्हें उठा भी नहीं पाया था। ज्यादा पढ़े :-
* चौदह वर्ष तक भूखे रहे।
लक्ष्मण जी ने वनवास के 14 वर्षो में आहार का एक भी निवाला नहीं खाया था। क्योंकि जब भी लक्ष्मण फल लेकर आते थे तो श्रीराम उन्हें तीन हिस्सों में बाँट देते थे। लेकिन लक्ष्मण जी अपने हिस्से के फलो को खाने के बजाय सुरक्षित रख लेते थे। उन्हें लगता था की श्रीराम ने उन्हें फल खाने के लिए कभी आज्ञा ही नहीं दी इसलिए उन्होंने 14 वर्ष तक कुछ भी नहीं खाया था। जिस टोकरी में लक्ष्मण जी अपने हिस्से के फलो को रखते थे उस टोकरी को महावीर हनुमान जी भी नहीं उठा पाए थे।
* चौदह वर्ष तक सोये नहीं |
वनवास में श्रीराम के साथ जाते हुए लक्ष्मण जी की माता सुमित्रा ने उन्हें यह आज्ञा दी थी की अपने भाई और भाभी की सेवा करना। जब वे सो जाए तो पहरा देना और जगे हो तो उनकी सेवा करना। अपनी माता की इस आज्ञा को मानते हुए लक्ष्मण जी वनवास के 14 वर्षो तक नहीं सोये थे। जब श्रीराम और माता सीता कुटिया में होते तो वे पहरा देते और जब वे बहार आ जाते तो उनकी सेवा में लग जाते।
* चौदह वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन किया
14 वर्ष तक लक्ष्मण जी ने ब्रह्चर्य व्रत का पालन किया तथा इन चौदह वर्षो में उन्होंने किसी भी स्त्री का चेहरा तक नहीं देखा था। वह जब भी माता सीता से बात करते थे तो उनकी नज़र उनके चरणों पर रहती थी। ज्यादा पढ़े :-
कई वर्षो तक बिना खाये ,बिना सोये तथा ब्रह्मचारी रहने के इस त्याग के कारण ही लक्ष्मण जी मेघनाद (इंद्रजीत ) का वध कर पाए थे। अन्यथा कोई भी इंदरजीत को पराजित नहीं कर सकता था।
इन सभी बातो की पुष्टि महर्षि तब हुई जब महर्षि अगस्त्य श्रीराम की सभा में आए। राम ने लंका के युद्ध की चर्चा करते हुए उनसे कहा, 'मैंने रावण, कुंभकर्ण को रणभूमि में मार गिराया था तथा लक्ष्मण ने इंद्रजीत और अतिकाय का वध किया था। तब महर्षि ने उन्हें समझाया, 'हे राम, इंद्रजीत(मेघनाद ) लंका का सबसे बड़ा वीर था। वह इंद्र को बांध कर लंका ले आया था। ब्रह्माजी आकर इंद्र को मांग ले गए। इंद्रजीत बादलों की ओट में रहकर युद्ध करता था। लक्ष्मण ने उसका वध किया तो लक्ष्मणजी के समान त्रिभुवन में कोई वीर नहीं है।
महर्षि अगस्त्य श्रीराम को इंद्रजीत की मृत्यु का रहस्य समझाया की इंद्रजीत को वरदान था कि जो व्यक्ति चौदह वर्ष तक नहीं सोया हो, न ही इन वर्षों में किसी स्त्री का मुख देखा हो, इन वर्षों में भोजन नहीं किया हो ऐसा व्यक्ति ही इंद्रजीत को मार सकता था।
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