जानिए भगवान शिव के तीसरी आंख का रहस्य | Third Eye of Lord Shiva in Hindi

जानिए भगवान शिव के तीसरी आंख का रहस्य | Third Eye of Lord Shiva in Hindi

भगवान शिव के त्रिनेत्र का रहस्य | त्रिनेत्रधारी महादेव | त्रिलोचन महादेव | भगवान शिव की तीसरी आंख का वैज्ञानिक रहस्य | 

Secrets Of the third Eye of Shiva in Hindi | Trilochan Mahadev in Hindi | Third Eye of Lord Shiva

भगवान शिव का तीसरा नेत्र 

देवों के देव महादेव (भगवान शिव) को कौन नहीं जानता जो हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार सनातन धर्म के सबसे शक्तिशाली भगवान माने जाते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों महा पुराणों में वर्णित है कि देवों के देव महादेव यानी क भगवान शिव इस सृष्टि के सबसे पहले देवता है।  भगवान शिव आदि, अनादि माने जाते हैं यानी की भगवान शिव जिनका न कोई आरम्भ है और न ही कोई अंत। कोई नहीं जानता कि भगवान शिव का जन्म कब हुआ और कैसे हुआ था और ना ही कोई  जानता है कि भगवान शिव कहां रहते हैं। बस उनके भक्तों के मन में उनके प्रति आस्था है कि भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत पर होता था। भगवान शिव को समय और काल चक्कर के बंधनों से परे माना जाता है जिन पर वासना, भावना, अपमान, मान, मोह , माया  आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 

THIRD EYE OF SHIV IN HINDI
भगवान शिव के त्रिनेत्र का रहस्य

भगवान शिव को अन्य भगवान से अलग इसलिए माना जाता है क्योंकि उनकी वेशभूषा के बारे में पुराणों में वर्णित है कि वह ऋषभ की छाल पहनते थे और गले में सर्प रखते थे। उनकी जटाओं में से गंगा नदी बहती है और उनके माथे पर हमेशा चंद्रमा विराजमान रहते हैं। महादेव श्रृंगार के तौर पर इंसान को जलाने के बाद जो  भस्म  रह जाती है वह अपने शरीर पर मलते है। मनुष्य, असुर, देवता, नाग, गन्धर्व  आदि सभी महादेव की आराधना करते हैं।  महापुराणों  भी वर्णित है कि भगवान विष्णु हमेशा महादेव (भगवान शिव ) का ध्यान करते हैं और भगवान शिव हमेशा भगवान विष्णु का ध्यान करते रहते हैं। सभी देवी देवताओं में महादेव ऐसे भगवान है  जिनको   त्रिनेत्रधारी, त्रिलोचन या तीन आंख वाला भी कहा जाता है तो आइए आज हम भगवान शिव के तीसरे नेत्र के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं।

त्रिलोचन या त्रिनेत्रधारी महादेव | भगवान शिव का तीसरा नेत्र 

महापुराणों और महाग्रंथो में भगवान शिव  के  मस्तिष्क  पर एक तीसरी आंख के होने का उल्लेख किया गया  है। इसी वजह से उनको त्रिलोचन  या  त्रिनेत्रधारी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव अपनी तीसरी आँख से भूतकाल ,वर्तमान कल तथा भविष्य में जो भी होने वाला है वह देख सकते है। जबकि सामान्य आँखों से यह सब देख पाना असंभव है । भगवान शिव की तीसरी आंख खुलने को प्रलय का रूप भी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की तीसरी आंख से निकलने वाली क्रोध अग्नि इस धरती के साथ साथ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को जलाने का सामर्थ्य रखती है।  भगवन शिव अपने तीसरे नेत्र को तभी खोलते है जब फिर वे ब्रह्मांड में झांक रहे होते हैं। ऐसी स्थिति में वे कॉस्मिक फ्रिक्वेंसी या ब्रह्मांडीय आवृत्ति से जुड़े होते हैं। तब वे कहीं भी देख सकते हैं और किसी से भी प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

THIRD EYE OF LORD SHIVA
भगवान शिव का तीसरा नेत्र

भगवान शिव  जी के तीनों नेत्र अलग-अलग गुण  को प्रदर्शित करते हैं, जिसमें दांए नेत्र सत्वगुण और बांए नेत्र रजोगुण और तीसरे नेत्र में तमोगुण का वास है। भगवान शिव ही एक ऐसे देव हैं जिनकी तीसरी आंख उनके ललाट पर दिखाई देती है, जिसके कारण इन्हें  त्रिलोचन  भी कहा जाता है।  माना जाता है कि शिव का तीसरा चक्षु आज्ञाचक्र पर स्थित है। आज्ञाचक्र ही विवेकबुद्धि का स्रोत है। भगवान शिव की  एक आंख में चंद्रमा और दूसरी में सूर्य का वास है, और तीसरी आंख को उनका विवेक माना जाता है।  भगवान शिव के मस्तक पर उनका तीसरा नेत्र उनकी अन्य सभी देवी दवाओं से अलग पहचान बनाता है। 

तीसरी आँख ( पीनियल ग्लेंड ) का वैज्ञानिक रहस्य    

मस्तिष्क के दो भागों के बीच (माथे) एक पीनियल  ग्रंथि  होती है। यह पीनियल ग्रंथि मनुष्य में ध्यान केंद्रित करने में सहायक होती है। भगवान शिव की तीसरी आंख इसी को दर्शाती है।  यह पीनियल  ग्रंथि मेलाटोनिन नामक एक हार्मोन्स को उत्पन्न  करती है। जो सोने और जागने के घटना चक्र का संचालन करता है।तीसरी आँख का अहम् कार्य मनुष्य को योग निद्रा में ले जाना भी होता है।  जर्मनी के वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि इस तीसरे नेत्र के द्वारा दिशा ज्ञान भी होता है। इसमें पाया जाने वाला हार्मोन्स मेलाटोनिन मनुष्य की मानसिक उदासी से सम्बन्धित है। अनेकानेक मनोविकारों एवं मानसिक गुणों का सम्बन्ध यहां स्रवित हार्मोन्स स्रावों से है।

यह पीनियल ग्रंथि रोशनी के प्रति संवेदनात्मक होती है इसलिए कफी हद तक इसे तीसरी आंख भी कहा जाता है। यह इंसान के अवचेतन मन की शक्ति को भी प्रदर्शित करती है। जब एक इंसान अपनी आँखे बाद कर लेता है या अँधा होता है लेकिन वह रौशनी का चमकना जरूर दिखाई देगा जो इसी पीनियल ग्लेंड के कारण है। यदि आप रौशनी का चमकना देख सकते हैं तो फिर आप सब कुछ देखने की क्षमता रखते हैं। यही वो पीनियल ग्लेंड है जो ब्रह्मांड में झांकने का माध्यम है। इसके जाग्रत हो जाने पर ही कहते हैं कि व्यक्ति के ज्ञान चक्षु खुल  जाते है। उसे निर्वाण प्राप्त हो गया या वह अब प्रकृति के बंधन से मुक्ति होकर सबकुछ करने के लिए स्वतंत्र है। इसके जाग्रत होने को ही कहते हैं कि अब व्यक्ति के पास दिव्य नेत्र का होना है जिसके द्वारा माना जाता है की इस दिव्य नेत्र तीसरी आँख के द्वारा इंसान अपने निकट भविष्य में होने वाली घटना को भी महसूस कर सकता है या अपने सामने वाले इंसान के मन को पढ़ सकता है |

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