कैलाश पर्वत के अनसुलझे रहस्य | कैलाश मानसरोवर के रहस्य

कैलाश पर्वत के अनसुलझे रहस्य | कैलाश मानसरोवर के रहस्य

अनसुलझे रहस्यों से भरा कैलाश पर्वत | कैलाश पर्वत  के अनसुलझे  रहस्य 

Kailash Mansarovar in hindi | Kailash Parvat in Hindi 

इस पृथ्वी पर बहुत सी ऐसी जगह है जो रहस्यों  से भरी हुई है।  हर देश मै कोई न कोई  रहस्यमई जगह या स्थान अवश्य होता है जिसक रहस्यों का खुलासा आज तक इंसान के द्वारा संभव नहीं हो पाया है। 21 वी शताब्दी जोकि आधुनिक विज्ञान से परिपूर्ण है वह भी इन रहस्यमई स्थानों के रहस्य को आज तक सुलझा  नहीं पाए हैं। इनमें से बहुत सी जगह पौराणिक इतिहास से जुड़ी हुई है तथा कुछ प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाते हैं। आज हम ऐसे ही एक रहस्यमई पर्वत  कैलाश पर्वत के बारे में बात करेंगे  जिसका  रहस्य आज तक भी वैज्ञानिक सुलझा नहीं पाए है। तो आइये जानते है कैलाश पर्वत से जुड़े रहस्यों के बारे में...  

KAILASH PARVAT
KAILASH PARVAT
1. भगवान शिव का निवास स्थान 

कैलाश पर्वत की कहानी पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी है इसमें यह बताया गया है कि कैलाश पर्वत भगवान शिव का निजी स्थान था जहां पर भगवान शिव रहा करते थे। विवाह के पश्चात भगवान शिव  संपूर्ण परिवार के साथ कैलाश पर्वत पर निवास करते थे इसलिए आज भी कैलाश पर्वत पर अलौकिक शक्ति का परवाह रहता है।  ज्यादा पढ़े :-

2. पृथ्वी का केंद्र बिन्दु 

यह माना जाता है कि कैलाश पर्वत पृथ्वी का केंद्र बिंदु है। कई पृथ्वी के एक तरफ उत्तरी ध्रुव है तो दूसरी तरफ कैलाश पर्वत है। हिंदू धर्म के अनुसार कैलाश पर्वत धरती का मुख्य स्थान है जहां पर सबसे शक्तिशाली भगवान देवों के देव महादेव यानी भगवान शिव स्वयं निवास करते थे। वैज्ञानिकों के अनुसार इस स्थान को एक्सिस मुंडी भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर आकाशीय तथा भौगोलिक ध्रुव का केंद्र है। स्थान पर दसों दिशाएं मिलती है तथा एक अलौकिक शक्ति हमेशा प्रवाहित रहते हैं।

3. मानसरोवर झील तथा राक्षस झील 

कैलाश पर्वत पर मानसरोवर झील  और  राक्षस नामक झील मौजूद है। जिनका अपना ही  अलग  प्राकृतिक सौंदर्य है। मानसरोवर झील का आकार सूर्य के समान दिखाई देता है और इसका पानी बहुत शुद्ध होता है। जबकि दूसरे  झील जिसे राक्षस झील  के नाम से जाना जाता है वह खारे पानी का स्त्रोत है और इसका आकार चंद्रमा के समान दिखाई देता है। इस प्रकार मानसरोवर झील तथा राक्षस झील दोनों सकारात्मक तथा नकारात्मक ऊर्जा से संबंधित है। जहां एक और मानसरोवर झील सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा को दर्शाती है तो वहीं दूसरी ओर राक्षस झील  चंद्रमा की तरह नकारात्मक ऊर्जा को दर्शाती है। इन झील का निर्माण प्राकृतिक है या नहीं यह आज तक रहस्य बना हुआ है।  ज्यादा पढ़े :-

4. कोई चढ़ाई नहीं कर पाया 

 बहुत से लोगों ने कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने के कोशिश अवश्य की थी लेकिन उनमें से कोई भी सफल नहीं हो पाया।आज तक कैलाश पर्वत पर कोई चढ़ाई नहीं कर पाया है। कैलाश पर्वत की ऊंचाई की बात करे तो माउंट एवरेस्ट पर्वत से 2200 मीटर कम ऊंचाई है। कैलाश पर्वत माउंट एवरेस्ट से ऊंचाई में बहुत कम है लेकिन फिर भी माउंट एवरेस्ट पर हजारों लोग चढ़ाई कर चुके हैं लेकिन आज तक कैलाश पर्वत पर कोई भी चढ़ाई करने में सफल नहीं हुआ है। यह पर्वत आज भी इंसानों के लिए अजेय है। 

5. नदियों का उद्गम 

कैलाश पर्वत से 4 महा नदियां निकलती है जो निम्न है। ब्रह्मपुत्र नदी, सिंधु नदी. सतलज नदी व करनाली नदी। इन चारों नदियों से आगे चलकर गंगा नदी सरस्वती नदी तथा चीन देश की अन्य कई नदियां निकलती है। कैलाश पर्वत पर चारों दिशाओं में जानवरों के मुख बने हुए हैं जिनमें से नदियों का उद्गम होता है जिसमें निम्न है, अश्वमुख, हाथी का मुख, शेर का मुख, और मोर का मुख।  ज्यादा पढ़े :-

6. ॐ तथा डमरू की आवाज 

कैलाश पर्वत मानसरोवर  झील के क्षेत्र में जाते ही  हमें डमरू जैसी आवाज सुनाई देते हैं। डमरू के साथ-साथ ओम शब्द कि ध्वनि मंद मंद सुनाई देते हैं। वैज्ञानिकों का यह मानना है कि यह आवाज बर्फ के पिघलने की हो सकती है तथा प्रकाश और ध्वनि के  बीच  इस तरह का समन्वय बनता है कि जिससे ओम की ध्वनि सुनाई देती है।

 कैलाश पर्वत के बारे में अन्य जानकारी ....

कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत शृंखला है।  इस तीर्थ को अस्टापद, गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। कैलाश के बर्फ से  ढका  6,638 मीटर  ऊँचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है। और इस प्रदेश को मानसखंड कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया। श्री भरतेश्वर स्वामी मंगलेश्वर श्री ऋषभदेव भगवान के पुत्र भरत ने दिग्विजय के समय इसपर विजय प्राप्त की। पांडवों के दिग्विजय प्रयास के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त किया था। 

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युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूँछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक ऋषि मुनियों के यहाँ निवास करने का उल्लेख प्राप्त होता है। जैन धर्म में इस स्थान का बहुत महत्व है। इसी पर्वत पर श्री भरत स्वामी ने रत्नों के 72 जिनालय बनवाये थे कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है और ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है। पर्वतों से बने षोडशदल कमल के मध्य यह स्थित है। यह सदैव बर्फ से  ढका  रहता है। इसकी परिक्रमा का महत्व कहा गया है। तिब्बती (लामा) लोग कैलाश मानसरोवर की तीन अथवा तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं और अनेक यात्री दंड प्रणिपात करने से एक जन्म का, दस परिक्रमा करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है। जो 108 परिक्रमा पूरी करते हैं उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती है।  ज्यादा पढ़े :-

कैलाश-मानसरोवर जाने के अनेक मार्ग हैं किंतु उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट, धारचूला, खेत, गर्ब्यांग,कालापानी, लिपूलेख, खिंड, तकलाकोट होकर जानेवाला मार्ग अपेक्षाकृत सुगम है।[3] यह भाग 544 किमी  लंबा है और इसमें अनेक चढ़ाव उतार है। जाते समय सरलकोट तक 70 किमी  की चढ़ाई है, उसके आगे 74 किमी   उतराई है। मार्ग में अनेक धर्मशाला और आश्रम है जहाँ यात्रियों को ठहरने की सुविधा प्राप्त है। गर्विअंग में आगे की यात्रा के निमित्त याक, खच्चर, कुली आदि मिलते हैं। तकलाकोट तिब्बत स्थित पहला ग्राम है जहाँ प्रति वर्ष ज्येष्ठ से कार्तिक तक बड़ा बाजार लगता है। तकलाकोट से तारचेन जाने के मार्ग में मानसरोवर पड़ता है।


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