भगवान कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी? | कैसे हुआ था यदुवंश का विनाश?

भगवान कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी? | कैसे हुआ था यदुवंश का विनाश?

भगवान कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी? |  कैसे हुआ था यदुवंश का विनाश?

महाभारत का युद्ध इतिहास के सबसे बड़े धर्मयुद्ध के रूप में देखा जाता है यह युद्ध हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र के पुत्रमोह तथा उनके पुत्रो के अत्यधिक महत्वाकांक्षी होने के कारण लड़ा गया था। महाभारत का यह युद्ध 18 दिनों तक चला जिसमे भारतवर्ष के सबसे अधिक सैनिको तथा योद्धाओ को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी थी।

death of krishna

 

 गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को श्राप 

18 दिन तक महाभारत के युद्ध के बाद, जब दुर्याोधन का अंत  होने के बाद उनकी माता गांधारी बहुत दुःखी हो गई थी। वह अपने बेटे के शव पर शोक व्यक्त करने के लिए रणभूमि में गई।माता गांधारी महाभारत के युद्ध होने का कारण श्रीकृष्ण को मान रही थी क्योंकि वह जानती थी की यदि श्रीकृष्ण चाहते तो ये युद्ध होने से रोक सकते थे। रणभूमि में भगवान कृष्ण और पांडव भी उसके साथ गए थे। अपने बेटों की मृत्यु से  संतप्त हुई गांधारी ने भगवान कृष्ण को मृत्यु का शाप दे दिया और कहा की जैसे हमारे पुरे वंश का नाश हुआ है वैसे ही यदुवंश का भी विनाश हो जाएगा।  भगवान कृष्ण मुस्कुराए और स्वयं पर लगा अभिशाप स्वीकार कर लिया। और ठीक 36 वर्षों के बाद उनका अंत एक शिकारी के हाथों हुआ।

श्राप के 35 वर्ष बाद की घटना  

श्रीकृष्ण का एक पुत्र था जिसका नाम सांब था।  एक बार सांब  स्त्री का वेश लेकर अपने दोस्तों के साथ ऋषि विश्वामित्र, दुर्वासा, वशिष्ठ और नारद से मिलने गया। वे सभी श्रीकृष्ण के साथ एक औपचारिक बैठक में शामिल होने के लिए द्वारका आए थे। स्त्री के वेश में सांब ने ऋषियों से कहा कि वो गर्भवती है। वे उसे ये बताएं कि उसके गर्भ में बच्चे का लिंग क्या है। उनमें से एक ऋषि ने इस खेल को समझ लिया और क्रोधित होकर सांब को श्राप दिया कि वो लोहे के तीर को जन्म देगा, जिससे उनके कुल और साम्राज्य का विनाश होगा।                 अन्य रोचक जानकारी         

सांब ने ये सारी घटना उग्रसेन को बताई, उग्रसेन ने सांब से कहा कि वे तांबे के तीर का चूर्ण बनाकर प्रभास नदी में प्रवाहित कर दे, इस तरह उन्हें उस श्राप से छुटकारा मिल जाएगा। सांबा ने सब कुछ उग्रसेन के कहे अनुसार ही किया। साथ ही उग्रसेन ने ये भी आदेश पारित कर दिया कि यादव राज्य में किसी भी प्रकार की नशीली सामग्रियों का ना तो उत्पादन किया जाएगा और ना ही वितरण होगा। इस घटना के बाद द्वारका के लोगों ने विभिन्न अशुभ संकेतों का अनुभव किया। सुदर्शन चक्र कृष्ण के शंख, उनके रथ और बलराम के हल का अदृश्य हो जाना, अपराधों और पापों में बढ़ोत्तरी होना, लाज-शर्म जैसी चीजों का समाप्त हो जाना। स्त्रियों द्वारा अपने पतियों और पुरुषों द्वारा अपनी पत्नियों के साथ विश्वासघात करना आदि।  

मदिरा के नशे में चूर सात्याकि कृतवर्मा के पास पहुंचा और अश्वत्थामा को मारने की साजिश रचने और पांडव सेना के सोते हुए सिपाहियों की हत्या करने के लिए उसकी आलोचना करने लगा। वही कृतवर्मा ने भी सात्याकि पर आरोप मढ़ने शुरू कर दिए। बहस बढ़ती गई और इसी दौरान सत्याकि के हाथ से कृतवर्मा की हत्या हो गई। कृतवर्मा की हत्या करने के अपराध में अन्य यादवों ने मिलकर सात्यकि को मौत के घाट उतार दिया। जब कृष्ण को इस बात का पता चला तो वे वहां पर प्रकट हुए और एरका घास को हाथ में उठा लिया। ये घास एक छड़ में परिवर्तित हो गई जिससे श्रीकृष्ण ने दोषियों को सजा दी।

मदिरा के नशे में चूर सभी ने घास को अपने हाथ में उठा लिया और सभी के हाथ में मौजूद वो घास लोहे की छड़ बन गई। जिससे सभी लोग आपस में ही भिड़ गए और एक-दूसरे को मारने लगे। वभ्रु, दारुक और कृष्ण के अलावा अन्य सभी लोग मारे गए। बलराम इस उपद्रव का हिस्सा नहीं थे इसलिए वो भी बच गए। कुछ समय बाद वभ्रु और बलराम की भी मृत्यु हो गई, जिसके बाद कृष्ण ने दारुक को पांडवों के पास भेजा और कहा कि अर्जुन को सारी घटना बताकर उससे मदद लेकर आए।

श्री कृष्ण की मृत्यु 

दारुक इन्द्रप्रस्थ की ओर रवाना हो गया और पीछे से ही श्रीकृष्ण ने अपना देह त्याग दिया। कृष्ण की मृत्यु की घटना प्रभास नदी से ही जुड़ी है जिसमें लोहे की छड़ का चूर्ण बहाया गया था। लोहे की छड़ का चूर्ण एक मछली से निगल लिया और वह उसके पेट में जाकर धातु का एक टुकड़ा बन गया। जीरू नामक शिकारी ने उस मछली को पकड़ा और उसके शरीर से निकले धातु के टुकड़े को नुकीला कर तीर का निर्माण किया। कृष्ण वन में बैठे ध्यान में लीन थे। जीरू को लगा वह कोई हिरण है, उसने कृष्ण पर तीर चला दिया जिससे श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई।

कुछ समय बाद अर्जुन मदद लेकर द्वारका पहुंचे और कृष्ण की मृत्यु की खबर पाकर अत्यंत दुखी हो गए। कृष्ण के जाने के बाद द्वारका में उनकी 16000 रानियां, कुछ महिलाएं, वृद्ध और बालक की शेष रह गए। वे सभी इन्द्रप्रस्थ के लिए रवाना होने लगे। परंतु जैसे ही लोग द्वारका छोड़ने के लिए तैयार हुए, जल का स्तर बढ़ने लगा। म्लेच्छ और डाकुओं ने द्वारका पर आक्रमण कर दिया और जब अर्जुन उनकी सहायता करने के लिए अस्त्र चलाने लगे तो वे सभी मंत्र भूल गए। द्वारका नगरी पानी में जलमग्न हो गई। अर्जुन, श्रीकृष्ण की कुछ रानियों और शेष प्रजा को लेकर इन्द्रप्रस्थ आ गए और वापस आकर सारी घटना युधिष्ठिर को बताई। भगवान कृष्ण का पूरा यादव वंश धीरे-धीरे समाप्त हो गया और द्वारिका समुद्र में डूब गई जहां वह अभी भी हैं। गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिए एक श्राप के कारण पूरा यदुवंश समाप्त हो गया। 

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