बॉयकॉट लाल सिंह चड्डा । बॉयकॉट पठान .
boycot bollywood .
दोस्त आपने सुना होगा की हाल ही में बॉयकॉट बॉलीवुड के नाम से हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अलग एक ही ट्रेंड लगातार चलाया जा रहा है । भारत की जनता बॉलीवुड फिल्मों तथा हिंदी फिल्मों का लगातार बहिष्कार कर रहे हैं और यह पिछले कुछ दिनों से ही सुर्ख़ियों में आया है। बॉयकॉट बॉलीवुड ट्रेंड का सबसे ज्यादा असर आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा और अक्षय कुमार की फिल्म रक्षाबंधन जो कि लाल सिंह चड्ढा फिल्म के साथ ही रिलीज हुई थी पर देखने को मिल रहा है। इन दोनों ही फिल्मों की कमाई अपने लागत तक भी नहीं पहुंच पाई है और यह दोनों फिल्में इस साल की सबसे फ्लॉप फिल्मों में शामिल हो गई हैं। और इसी के साथ ही इसका असर अनुराग कश्यप की नई रिलीज हुई फिल्म दोबारा पर भी देखने को मिल रहा है जिसमें तापसी पन्नू ने काम किया है ।
किसी फिल्म के बॉयकॉट का मतलब क्या होता है.
Meaning of boycot a film
और आखिर क्यों हो रहा है हिंदी फिल्मों का बॉयकॉट आइए जानते हैं।
दोस्त बॉयकॉट का मतलब होता है की जब निर्माता द्वारा बनाए गए किसी भी कंटेंट या उत्पाद को जनता या तो पसंद नहीं करती या फिर उस कंटेंट में पब्लिक के रूचि के अनुसार कहानी, अभिनय या दृश्य सामग्री नहीं होती दो पब्लिक उस फिल्म को देखने में रुचि नहीं दिखाते इसलिए जनता उस फिल्म या उत्पाद का बायकाट कर देते हैं। आसान शब्दों में समझें तो बॉयकॉट का सीधा सा मतलब होता है की उस उत्पाद चाहे वह किसी भी प्रकार का हो भौतिक हो या दृश्य हो, जनता बहिष्कार कर देती है।
हालांकि हिंदी फिल्मों का बहिष्कार पहले भी किया जाता रहा है । क्योंकि आपको बॉलीवुड में बहुत सारी ऐसी फिल्में या टीवी सीरियल ऐसे मिल जाएंगे जिनमें अधिकतर हिंदू धर्म का मजाक उड़ाया गया है या फिर हिंदू धर्म के देवी-देवताओं को आपत्तिजनक दृश्य के साथ दिखाया गया है जिस कारण लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचती आई है। लेकिन इस बार यह है अपने चरम सीमा पर है कि लोग बॉलीवुड की फिल्मों का बढ़-चढ़कर विरोध कर रहे हैं इसका कारण कुछ फिल्म निर्माता तथा फिल्म के सुपरस्टार दोबारा एक धर्म विशेष की आस्था को ठेस पहुंचाने का कारण सामने आया है। जब से सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की थी तब से लेकर जनता शायद बॉलीवुड में चल रहे नशा, नेपोटिज्म, और देश विरोधी तथा धर्म विरोधी एजेंडा को लेकर सकते में आ गई है।
बॉयकॉट बॉलीवुड का ट्रेंड का कारण हाल ही में आमिर खान के द्वारा अपनी फिल्मों में तथा बयानों हिंदू धर्म के देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने का आरोप है तथा उन्होंने कई बार देश विरोधी गतिविधियों में भी देखा गया है। और वे अक्सर देश के खिलाफ है बोलते नजर आए हैं जबकि में पाकिस्तान प्रेम को हमेशा दर्शाते आए हैं। आमिर खान की इन्हीं बयानबाजी के कारण जनता के मन में उनके प्रति रोष बहुत अधिक था जिसकी वजह से आमिर खान की फिल्म रिलीज होने से पहले ही उसका बॉयकॉट करने की मांग उठने लगी थी जोकि आगे चलकर एक बहुत बड़ा ट्रेंड बन गया । शायद अब जनता ने ठान लिया है की जो भी व्यक्ति उनके धर्म या उनके देवी देवताओं का अपमान करेगा अब उसकी फिल्में देखना तो दूर उनकी पहले से ही उनकी फिल्मों का बाय कोर्ट का सिलसिला शुरू कर दिया जाएगा । और वैसे भी बॉलीवुड में अब अच्छी फिल्में देखने को मिलती ही नहीं है आमिर खान की फिल्म के साथ-साथ अक्षय कुमार की फिल्म जो कि रक्षाबंधन पर रिलीज हुई थी जिसका नाम रक्षाबंधन था वह भी बाकोट हॉलीवुड चित्रण का शिकार हो गई।
बायकॉट बॉलीवुड के ट्रेंड को मजाक समझने की वजह से अनुराग कश्यप और ताप्सी पन्नू ने बॉयकॉट करने वाले गैंग पर हंसी उड़ाई थी और वह बोल रहे थे कि की हमारी भी फिल्मों का बॉयकॉट करोगी करेंगे। और बाद में हुआ भी यही जनता ने अनुराग कश्यप द्वारा निर्मित फिल्म दोबारा को रिलीज होते हैं फ्लॉप करवा दिया । जनता का कहना है कि आगे बॉलीवुड मैं ऐसी कोई भी फिल्म यदि बनाई जाएगी जिसमें विशेषकर हिंदू धर्म के देवी-देवताओं का अपमान होगा तो उस फिल्म का बायकॉट कर दिया जाएगा। बायकोट बॉलीवुड का असर शाहरुख खान की आने वाली मूवी पठान पर भी देखने को मिलेगा क्योंकि शाहरुख खान की मूवी पठान अभी तक रिलीज भी नहीं हुई है जबकि बॉयकॉट पठान के नाम से ट्रेंड अभी से चलने लगा है।
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में क्या प्रोपगेंडा चलाया गया । बॉलीवुड में हिंदुत्व को बदनाम करने की क्रोनोलोजी समझिए ।
बॉबी देओल एक इंटरव्यू में बताते है कि 15-16 मेकर्स के साथ बात चल रही थी फिर अचानक से धीरे धीरे सब पीछे हटते गए और अंत में उनके पास काम नहीं रहा! यह एक बानगी है कि आखिर कैसे एक के बाद एक अति लोकप्रिय कलाकार जैसे गोविंदा, सनी देओल, बॉबी देओल धीरे धीरे बेरोजगार होते चले गए या यह कह लीजिये कि किसी के इशारे पर बेरोजगार कर दिए गए और फिर खान तिकड़ी का उदय होता है! जिस बात को बॉबी देओल धीरे से कहते है उसी बात को गोविंदा आश्चर्य के साथ कहते है! गोविंदा का कोई भी इंटरव्यू उठा लीजिये उन्हें समझ ही नहीं आता है कि आखिर उनके स्टारडम को कौन खा गया? उनके इंटरव्यू में खीज साफ़ दिखती है! इन सबसे पृथक सनी देओल ने इस विषय पर गरिमामयी मौन धारण कर लिया और कभी कुछ नहीं बोला! बड़ी पीड़ा से कई बार उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कोई भी बड़ी अभिनेत्री उनके साथ काम नहीं करना चाहती है!
सनी देओल फिल्म इंडस्ट्री के अकेले ऐसे कलाकार थे जिनके अंदर किसी स्टार का भय नहीं था, वे स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से विचलित नहीं होते थे वरन दो कदम आगे बढ़कर चुनौती स्वीकार करते थे! जब आमिर खान के सामने कोई फिल्म रिलीज़ करने का सहस नहीं करता था तब 90s में आमिर की "दिल" के साथ सनी की घायल रिलीज़ हुई, लगान के साथ ग़दर रिलीज़ हुई और राजा हिंदुस्तानी के साथ जीत रिलीज़ हुई और सनी देओल की ये तीनो फिल्मे सुपरहिट रही! अतः जो लोग अंडरवर्ल्ड का पैसा फिल्मो में लगा रहे थे उनके लिए सनी देओल गले की फंस बन चुके थे! कुल मिलाकर सनी देओल "unmanageable" थे, सनी "corruptible" ही नहीं थे! सनी को अंडरवर्ल्ड ने जबरन बेरोजगार किया अन्यथा 2 बार नेशनल अवार्ड जीतने वाले अभिनेता के पास काम नहीं होने का ओर क्या कारण हो सकता है? सनी देओल के रेस से बहार होने का सबसे अधिक फायदा सलमान खान को हुआ, सलमान सस्ते सनी देओल के तौर पर उभरे! एक के बाद एक एक्शन फिल्मे सलमान खान को मिलने लगी! वो समय ऐसा था जब एक्शन फिल्मो में पांच सितारों का राज हुआ करता था - सनी देओल, संजय दत्त, अक्षय कुमार, अजय देवगन और सुनील शेट्टी! सनी देओल की कीमत पर सलमान खान स्टार बने! सनी देओल अंडरवर्ल्ड के निशाने पर कैसे आये इसका आगे बताता हूँ!
बॉलीवुड के इस्लामीकरण की क्रोनोलॉजी समझिये!
पाकिस्तान ने एक साजिश के तहत अपने यहाँ फिल्म इंडस्ट्री को पनपने ही नहीं दिया पर भारतीय सिनेमा जगत में उनका "strategical" निवेश सदा से ही रहा! पाकिस्तान में बहुत कम फिल्मे बनती थी और जो बनती थी उनके केंद्र में "इस्लाम" रहता था! कुल मिलकर पाकिस्तान की फिल्म इंडस्ट्री शरिया "compliance" रही! अपने यहाँ उन्होंने इस्लाम केंद्रित सिनेमा रखा और मनोरंजन के लिए भारतीय सिनेमा सदा उपलब्ध था ही! पाकिस्तान के भारतीय सिनेमा में "strategical" निवेश ने ही फिल्मो के माध्यम से सॉफ्ट इस्लाम और इस्लामीकरण के दरवाजे खोले! यही से सिनेमा हिंदू विरोधी बना! आज की फिल्मो में जो हिंदू विरोधी मानसिकता है उसका बीज आज से 50-60 पहले बोया गया था जो समय के साथ वृक्ष बन गया और हिन्दू आस्थाओ का अपमान करना बहुत छोटी सी बात हुआ करती थी!
इसी मिशन का अगला चरण था अरबो की फिल्म इंडस्ट्री का पूर्ण इस्लामीकरण और उस पर जिहादी अथवा जिहादी मानसिकता के लोगो का अतिक्रमण!
मुंबई स्तिथ फिल्म इंडस्ट्री काले धन के शोधन का सरल सुगम और सुरक्षित अड्डा बनी! ISI ने दाऊद इब्राहिम के नाम का इस्तेमाल कर फिल्म इंडस्ट्री पर कब्ज़ा जमाया । सच्चाई यही है कि सेक्स व्यभिचार अनाचार भ्रष्टाचार के इस संसार को ISI ही नियंत्रित करती है! आज इस विषय पर सोनाली बेंद्रे का बयान है उन्होंने बताया है कि वे आखिर कैसे उस समय के अपने पुरुष मित्र जो कि आज उनके पति है उनके सहयोग से अंडरवर्ल्ड के शिकंजे में फंसने से बची रही! पर हर कोई सोनाली बेंद्रे जितना भाग्यशाली नहीं होता है! अंडरवर्ल्ड या यह कह लीजिये कि ISI/पाकिस्तान का पैसा फिल्मो में लगता था और खास बात यह थी कि वे केवल मुस्लिम हीरो की फिल्मो में ही पैसा लगते थे! जब सनी देओल उनके सामने फिल्म रिलीज़ करते थे तो उसका सीधा नुकसान अंडरवर्ल्ड/ISI को होता था! यही से सनी देओल और गोविंदा जैसे लोग निशाने पर आये!
ग़दर की रिलीज़ के समय पाकिस्तान के मीडिया में सनी देओल एक सनसनी बन चुके थे! हर रोज कोई न कोई चैनल सनी देओल को लेकर बहस कर रहा होता था और उन्हें इस्लाम विरोधी और पाकिस्तान विरोधी के रूप में प्रोजेक्ट कर रहा होता था! सनी देओल के अंडरवर्ल्ड के निशाने पर आने का यह दूसरा कारण रहा! पाकिस्तान में आज भी सनी देओल से नफरत का आलम यह है कि वहां होने वाले कॉमेडी शोज में सनी देओल के डुप्लीकेट को लेकर उनका जमकर उपहास बनाया जाता है!
हिन्दू विहीन फिल्म इंडस्ट्री बनाने के लिए यह जरुरी था कि सनी देओल, गोविंदा और नाना पाटेकर जैसे महालोकप्रिय कलाकारों को ठिकाने लगाया जाए! पाकिस्तानी "strategical" निवेश ने यह काम बखूबी किया और धीरे धीरे इनको काम मिलना पहले कम हुआ और अब लगभग बंद ही है! आज हर बड़ा स्टार या तो मुस्लिम है या "वोक"! "वोक" यानि कुत्ता - जिनका काम होता है होली पर पानी बचाओ और दीपावली पर प्रदुषण मत फेलाओ का ज्ञान देना! गोविंदा जैसे संस्कारी हिन्दू अब फिल्म इंडस्ट्री में बहुत क्रूरता के साथ दुत्कारे जाते है!
यहाँ से समय करवट लेता है और युवा उठ खड़ा होता है और कहता है कि अब बहुत हुआ अब और सनातन का अपमान नहीं सहेंगे! बहिष्कार की जो आंच है उसकी तपिश बहुत दूर तक है ... जी हाँ बहुत दूर तक, इतनी दूर तक कि आम आदमी सोच भी नहीं सकता! पाकिस्तान का 50 साल से बनाया हुआ इकोसिस्टम ढह रहा है! भले ही बहिष्कार और बॉयकॉट जैसी चीजे बहुत बचकानी लगती हो पर इनकी मार बहुत गहरी है! भक्तो ने लाल सिंह चड्ढा के साथ जो तहर्रूश खेला है उसकी धमक पाकिस्तानी मीडिया में सुनाई दे रही है! आतंक और अपमान का टाइटैनिक डूब रहा है और जब आमिर खान जैसे लोग तमाम बात तो कहते है पर अपने किये पर शर्मिंदा नहीं होते और क्षमा याचना नहीं करते तो ऐसा लगता है जैसे डूबते हुए टाइटैनिक पर बैंड बजाया जा रहा है!
बहिष्कार और बॉयकॉट जैसे मिशन कोई राजनैतिक प्रोपेगंडा नहीं है बल्कि समय की जरुरत है! चुन चुन पर बहिष्कार नहीं करना है बल्कि सिनेमा का 99% बहिष्कार करना है ताकि शिकारियों के लिए फिल्म इंडस्ट्री घाटे का सौदा हो जाये और ये लोग इधर से बोरिया बिस्तर बांध कर निकल ले! इन्हे बेआबरू करके इधर से भगाना है! उसके लिए आप लोगो का लगातार सहयोग चाहिए!
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