Summry of human life-मानव जीवन का सार

Summry of human life-मानव जीवन का सार

मानव जीवन का सार 

 

एक मनुष्य का जीवन बहुत की उलझनों से भरा होता है जिसमे वह पाप -पुण्य ,अच्छा -बुरा ,अपना -पराया ,सही -गलत तथा तेरा - मेरा लगाए रखता है। कभी वह खुद को ऊँचा तथा कभी खुद को मजबूरियों में बंदी समझता है। कभी वह इतना अभिमानी हो जाता है की स्वयं के आलावा उसे दूसरा कोई दिखाई ही नहीं देता है। इसलिए हर इंसान को यह बातें ध्यान रखनी चाहिए :- 

हम की इस संसार के ऋणी है संसार हमारा ऋणी नहीं है। ये तो हमारा सौभाग्य है की हमें संसार में कुछ करने तथा विचरने का अवसर मिला है। जब भी हम इस संसार का कुछ अच्छा करते है तो हम अपना ही भला  कर रहे होते है। हमारा मानव रूपी शरीर ही भगवन का साक्षात् मंदिर है क्योंकि इंसान भगवान् की बनाई ;हुई सबसे श्रेष्ठ सरंचना है अतः इसकी ही पूजा होनी चाहिए। यह तो मानव पर ही निर्भर करता है की वह अपने अंदर रह रहे भगवान् के अंश को पहचान पाता है या नहीं। 


 एक मनुष्य का जीवन अनेको कठिनाइयों से भरा होता है इन कठिनाइयों से पार पाना ही बड़ी मुश्किलों का काम है। इसके अलावा एक इंसान अपने भोग विलास।,ऐश्वर्य आदि में इतना लिप्त रहता है की वह ये भूल जाता है की ये जीवन उसे अपने पाप कर्मो को भुगतने तथा मानव रूप में रहकर अच्छे काम करने के लिए मिला है। इंसान का सुख उसके साथ ही दुःख का मुखौटा पहनकर आता है इसलिए जो सुखी होना चाहता है उसे दुःख का भी अभिनन्दन करना चाहिए।  

एक मानव के जीवन में उसका स्वधर्म तथा उसका चरित्र ही उसकी सबसे बड़ी पूंजी होती है। यदि एक मानव अपने धर्म के प्रति निष्ठावान नहीं है तो वह अपने अच्छे चरित्र को नहीं बना सकता तो वह जंगल में रहने वाले जानवरो से अलग नहीं है।  

 मानव जीवन मिलने के बाद एक मनुष्य का अपने निजी तथा सार्वजानिक व्यक्तियो के प्रति कुछ कर्त्तव्य होते है जो की मनुष्य को हमेशा निभाने होते है। वह इन सभी में ही इतना खो जाता है की उसे अपने मनुष्य जीवन का अहम् लक्ष्य ही याद नहीं रहता। हर इंसान इस धरा पर अपनी एक भूमिका निभाने के लिए आता है जो उसके कर्मो का निमित बनती है।  ऐसा मन जाता है की मनुष्य अपने कर्मो का फल भुगतने के लिए पृथ्वी पर जन्म लेता है लेकिन यहाँ उसे अपने द्वारा किये गए कर्मो का फल भी इसी धरती पर मिल जाता है जो उसने यहाँ रहते हुए किये हो।  

अतः मनुष्य अपने कर्मो के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होता है चाहे वह अच्छा काम करे या बुरा इसका चयन वह खुद करता है और जैसा कर्म वह करता  है वैसा ही फल वह पता है।    


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